शिक्षा, संस्कृति और राजनीति
Wednesday, October 26, 2022
‘हिंदी साहित्य और सिनेमा’
Sunday, October 2, 2022
रामा विश्वविद्यालय में ‘जलसा डांडिया उत्सव-2K22’ में युवाओं ने जमकर लगाए ठुमके
इस अवसर पर डॉ. ओमवीर सिंह, रामा आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज, प्रो वैशाली धींगरा, डीन, एफसीएम, प्रो. मनीष धींगर, डीन, आर एंड डी सेल, डॉ. जैस्मी मनु, डीन, नर्सिंग, डॉ रविकांत गुप्ता, डीन, एफजेस, डॉ. अनीता यादव, डीन, एग्रीकल्चर एंड अलॉयड इंडस्ट्रीज, डॉ. कामरान जावेद नकवी, डीन, फार्मास्यूटिकल साईंसेज, डॉ. विकास सिंह, डीन, एफपीएस, सचिन चौधरी, सीनियर ब्रांड मैनेजर समेत विभिन्न विभागों के अध्यक्ष, फैकल्टी मेंबर्स, गैर-शैक्षणिक अधिकारी- कर्मचारी और बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।
Monday, September 26, 2022
Saturday, April 10, 2021
जिला गंगा समिति, मोतिहारी में प्रो. पवनेश कुमार समेत तीन प्रतिनिधि नामित
जिला गंगा समिति के गठन हेतु पूर्वी चम्पारण, मोतिहारी की तरफ से महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रबंधन विज्ञान एवं वाणिज्य संकाय के अध्यक्ष प्रो. पवनेश कुमार, मोतिहारी चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष सुधीर कुमार अग्रवाल और नगर निगम मोतिहारी की मुख्य पार्षद अंजू देवी को पूर्वी चम्पारण, मोतिहारी के जिलाधिकारी शीर्षक कपिल अशोक की तरफ से नामित किया गया है। प्रो. पवनेश को बतौर पर्यावरणविद् विशेषज्ञ, श्री सुधीर को बतौर स्थानीय उद्योगपति एवं श्रीमती अंजू को बतौर राज्य प्रदूषण बोर्ड की प्रतिनिधि नामित किया गया है। इस आशय का पत्र जिलाधिकारी श्री शीर्षक कपिल अशोक ने संयुक्त सचिव, नगर विकास एवं आवास-विकास, सह नोडल पदाधिकारी, राज्य परियोजना प्रबंधन समूह, बिहार, पटना को प्रेषित किया है। तीनों ही सम्मानित सदस्यों ने जिला गंगा समिति में नामित होने पर प्रसन्नता व्यक्त की है। वहीं प्रो. पवनेश ने जिलाधिकारी द्वारा उनपर विश्वास जताने पर आभार जताया और अपने दायित्वों के निर्वहन करने की बात कही। इस अवसर पर केविवि के शिक्षकों विद्यार्थियों एवं मोतिहारी के गणमान्य नागरिकों ने भी नगर के तीन जाने-माने बुद्धिजीवियों के जिला गंगा समिति में नामित होने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बधाई दी है।
Sunday, March 21, 2021
डॉ. सौरभ मालवीय की पुस्तक ‘भारत बोध’ का हुआ लोकार्पण
सिद्धार्थनगर 20 मार्च। माधव संस्कृति न्यास, नई दिल्ली और सिद्धार्थ विवि. सिद्धार्थनगर द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में डॉ. सौरभ मालवीय की लिखित पुस्तक भारत बोध समेत आठ पुस्तकों का लोकार्पण हुआ।
‘भारतीय इतिहास लेखन परंपरा : नवीन परिप्रेक्ष्य’ विषय पर अपनी बात रखते हुये मुख्य अतिथि बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी ने कहा कि आजादी के बाद इतिहास संकलन का कार्य हो रहा है। देश को परम वैभव के शिखर पर ले जाने में युवा इतिहासकारों का संकलन कारगर साबित होगा। कार्यक्रम शुभारंभ के दौरान माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, नोएडा परिसर में सहायक प्राध्यापक डॉ. सौरभ मालवीय की लिखित पुस्तक भारत बोध समेत आठ अलग-अलग लेखकों की पुस्तकों का मंत्री व कुलपति द्वारा लोकार्पण किया गया।
डॉ. द्विवेदी ने कहा कि भारत को पिछड़े और सपेरों का देश कहा गया है, इस विसंगती को दूर करने का कार्य जारी है। भारत के स्वर्णिम इतिहास का संकलन हो रहा है।
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (वर्धा, महाराष्ट्र) के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि युवा इतिहासकार भारत का इतिहास लिख सकते हैं। भारत का इतिहास उत्तान पाद, राम कृष्ण, समुद्र गुप्त, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राम- कृष्ण जैसे अनेक महापुरुषों से है। इतिहास वेद, ज्ञान, यश, कृति, पुरूषार्थ और संघर्ष का होता है। इतिहास में सच्चाई दिखने वाला होता है। आजादी के पहले कारवां चलता गया, हिंदोस्तां बढ़ता गया के आधार पर इतिहास लिखा गया। गोरी चमड़ी वाले अंग्रेज भारत कमाने आए और यहीं रह गये। बाद में हमारा इतिहास लिख दिया। वास्कोडिगामा जान अपसटल को चिट्ठी देने के लिए खोज में निकला था, जिसे लोग भारत की खोज करता बताते हैं। इसी इतिहास को युवा इतिहासकार बदलेंगे।
अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के संगठन सचिव डॉ. बालमुकुंद पांडेय ने कहा कि अभी तक जिस इतिहास को भारत वर्ष में हम पढ़ते और पढ़ाते हैं वह दासता के प्रतिरूप का इतिहास है, जबकि भारत का सही इतिहास कभी उसके वास्तविक स्वरूप में प्रस्तुत नहीं किया गया था। भारत के गौरवशाली परम्पराएँ और लोक मान्यता को हमें जानने और लिपिवध करने की जरूरत है। भारत के स्वर्णिम इतिहास को भारत की दृष्टि से देखना होगा।
नालंदा विश्वविद्यालय (बिहार) के कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि डार्विन की थ्यौरी में बंदर से मनुष्य बनने की कल्पना बताया गया है, जबकि ब्रह्मा से मनुष्य की रचना हुई है। भगवान हमारे इष्ट हैं। ब्रिटिश इंडिया कंपनी ने हमे विकृति मानसिकता का बना दिया। हम दिन ब दिन अंग्रेजों की बेडियों में जकड़े गये। हमें सांस्कृतिक परंपरा का बोध नहीं था। स्वतंत्रता के पश्चात हम सांस्कृतिक पुर्नउत्थान के लिए खड़े हुए हैं। अंग्रेजों ने किताबों में ऐसी बातें लिखी कि हम हीन भावना से ग्रसित हुए। हमने ग्रंथ, वेद, रामायण, पुराण पढ़ना छोड़ दिया, लेकिन हमे सारस्वत सरस्वती का बोध यहीं हुआ है। सब सास्वत है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. सुरेंद्र दूबे ने कहा कि भारत का इतिहास केवल राजा रजवाड़ों और उनके ऐसे आराम का इतिहास नहीं है, बल्कि भारत का इतिहास लोक का इतिहास है। हम इसका सहज अनुभव राम राज्य से कर सकते हैं।
कार्यक्रम का संचालन आईसीएचआर नई दिल्ली के डॉ. ओम उपाध्याय व आभार डॉ. सच्चिदानंद चौबे ने किया। इस कार्यक्रम में आशा दूबे, डॉ. सौरभ मालवीय, सौरभ मिश्रा, डॉ. रत्नेश त्रिपाठी, डॉ हर्षवर्धन एवं आनंद समेत 19 प्रांतों के विषय विशेषज्ञ व इतिहासरकार मौजूद रहे।
Sunday, August 16, 2020
पूर्व छात्र संघ, जेएनयू और केविवि-मोतिहारी, हिमाचल प्रदेश केविवि, हिंदी विवि, वर्धा, उड़ीसा केविवि व केविवि गुजरात के संयुक्त तत्वावधान में वेबिनार का आयोजन
प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल, प्रो. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री, प्रो. संजीव कुमार शर्मा समेत अन्य कुलपति, रजिस्ट्रार व जाने-माने शिक्षाविदों ने रखे विचार
(15 अगस्त, 2020)
भारत में 185 साल से जो शिक्षा नीति चली आ रही थी, उसमें उद्देश्य था कि भारतीयों को मानसिक रुप से गुलाम बनाना है। पुराने नीति निर्माताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वे अपने उद्देश्य में एकदम सफल रहे। मैं हैरान हूं कि उन्होंने एक भी कॉमा या फुल स्टॉप की गड़बड़ी नहीं की। अब तक जो व्यवस्था चलाते रहे वे मानते हैं कि हिंदुस्तान का ज्ञान-विज्ञान किसी काम का ही नहीं है, सब यूरोप का है। नई शिक्षा नीति के बारे में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति यह मानकर चलती है कि हिंदुस्तान में इतनी ऊर्जा, मेधा और अवसर हैं कि इनका ठीक प्रकार से सदुपयोग कर लिया जाए तो भारत बहुत आगे जा सकता है। हमारा जितना सदियों का ज्ञान है उसके आगे ब्रिटिश शिक्षा नीति ने दीवारें खड़ी की हैं, उन दीवारों को नई शिक्षा नीति हटाएगी। ये बातें हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री ने पूर्व छात्र संघ, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली और केविवि-मोतिहारी, हिमाचल प्रदेश केविवि, हिंदी विवि, वर्धा, उड़ीसा केविवि व केविवि गुजरात के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित वेबिनार में कही।
“आत्म निर्भर भारत के लिए नई शिक्षा नीति-2020 के आलोक में ज्ञानयुक्त समाज का निर्माण” विषय पर आयोजित इस वेबिनार की शुरुआत राष्ट्रीय गीत और सरस्वती वंदना के साथ हुई। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. महीप ने स्वागत भाषण दिया। इसके बाद कार्यक्रम के सचिव व पूर्व छात्र संघ, जेएनयू के महासचिव डॉ. धीरज कुमार सिंह ने अपना वक्तव्य दिया। इसके पश्चात पूर्व छात्र संघ, जेएनयू के अध्यक्ष राजेश कुमार ने सभी विद्वानों एवं विषय का परिचय देते हुए अपनी बात रखी। जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रमोद कुमार ने उद्घाटन वक्तव्य दिया। प्रारुप नई शिक्षा नीति, समिति के सदस्य प्रो. एम.के. श्रीधर ने बीज वक्तव्य दिया।
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति ने प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने नई शिक्षा नीति के बारे में अपने संबोधन में कहा कि इसका प्रारुप पहले ही आ गया था और जुलाई-2020 में भी विवि में इस विषय पर कार्यक्रम हुआ था। आज जो लोग इससे जुड़े हैं उनमें से कुछ लोग पहले भी कार्यक्रम से जुड़े थे। जो नई शिक्षा नीति आई है आज यह सही मायने में भारतीय है। यह भारतीय भाषाओं के सम्मान को बढ़ाती है। भारतीय भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों का निर्माण करना, उपलब्ध सामग्री का अनुवाद कराना, विद्यार्थियों तक पहुंचाना आदि योजनाएं केवल सरकार की नहीं है बल्कि शैक्षणिक जगत के जुड़े हम सभी लोगों का भी काम है। कार्ययोजना हमें बनानी होगी। नई शिक्षा नीति के खिलाफ भ्रांतियों का सामना करने के लिए प्रो. शर्मा ने जनसम्पर्क, जनसंचार और जनसंवाद को जरुरी बताया।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने अपने संवोधन में पूर्व वक्ता कुलपति प्रो. शर्मा की बातों से सहमति जताते हुए कहा कि यह भारतीय शिक्षा नीति है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति है। सच्चाई यह है कि यह 185 वर्षों बाद आई शिक्षा नीति है। यह 34 वर्षों बाद आई शिक्षा नीति है, इस रुप में इसे समझने आवश्यकता नहीं है। 1835 में जो शिक्षा नीति आई थी, उस शिक्षा नीति का 1992 में एक्सटेंशन मात्र हुआ है। 1968 में कोठारी ने जरुर कोशिश की थी कि गाड़ी को पटरी पर लाया जाए। लेकिन उनकी बातें केवल सुभाषित होकर रह गयीं। अब पहली बार ऐसी शिक्षा नीति आई है जिसमें सभी भारतीय भाषाओं के लिए समान अवसर प्राप्त होता है और वास्तविक संदर्भों में भारत की बहुभाषिकता को ताकत के रुप में मानते हुए प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति बहुभाषिक हो, यह इसकी दिशा में प्रस्ताव प्रस्तुत करता है। पहली बार भारत केंद्रित शिक्षा प्रणाली है।
केंद्रीय विश्वविद्यालय, उड़ीसा के कुलपति प्रो. आई. ब्रम्ह्मम ने नई शिक्षा नीति की प्रशंसा करते हुए इसे भारत की आवश्यकता के अनुरुप बताया। वहीं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व जाने-माने शिक्षाविद श्रीनिवासजी ने अपने संबोधन में कहा कि स्वतंत्रता दिवस के दिन जेएनयू के पूर्व छात्रों ने इस जरुरी विषय को चुना है, इसका बहुत महत्व है। नई शिक्षा नीति के माध्यम से हम लोग 185 वर्षों बाद अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं। भारत में शिक्षा, मनुष्य को मनुष्य बनाने पर बल देता है, जिसे विवेकानंद जी ने मनुष्य के आंतरिक शक्तियों को जागृत करने की बात कही है। यह
आवश्यक है कि भारत के युवा भारत को तो समझें, तभी हम विश्व में अपना स्थान बनाएंगे।
अध्यक्षीय संबोधन में केंद्रीय विश्वविद्यालय गुजरात के कुलपति प्रो. रमा शंकर दूबे ने पूर्व छात्र संघ, जेएनयू को इस महत्वपूर्ण विषय पर जाने-माने विद्वानों को आमंत्रित कर विमर्श कराने के लिए धन्यवाद दिया। अपने पूर्व वक्ताओं की बातों को क्रम से रखते हुए उन्होंने सहमति जताते हुए नई शिक्षा में निहित प्रमुख बिंदुओं की चर्चा की। भारत को चाणक्य, आर्यभट्ट, सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन और महामना मदन मोहन मालवीय का देश बताते हुए अपनी भारतीयता, ज्ञान-विज्ञान पर गर्व करने की बात कही।
महात्मा गांधी केन्द्रीय विवि के प्रबंधन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. पवनेश कुमार ने कार्यक्रम के निष्कर्ष को बताते हुए कहा आज बौद्धिक जनों ने जो मंथन किया वह भारत के कल का निर्माण होगा और इससे जो अमृत निकलेगा, उससे हम सभी लाभान्वित होंगे। कार्यक्रम का संचालन केन्द्रीय विवि, गुजरात के डॉ. अतानु महापात्रा ने किया। इस अवसर पर केविवि की डॉ. सपना सुगंधा, डॉ. दिनेश व्यास, डॉ. स्वाति कुमारी, कमलेश कुमार समेत देश के कई विश्वविद्यालयों के शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी व शिक्षाविद उपस्थित रहे।
केविवि में उच्च शिक्षा का संचालन, पुनर्गठन तथा क्रियान्वयन की रुपरेखा पर हुई चर्चा
*राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की कार्ययोजना विषय पर ई-कार्यशाला*
*कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने की अध्यक्षता, प्रो. मनोज दीक्षित, प्रो. स्मृति कुमार सरकार, प्रो.एडीएन वाजपेयी आदि वक्ताओं ने रखे विचार*
(6 अगस्त, 2020)
महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की कार्ययोजना के क्रियान्वयन की रुपरेखा, संचालन तथा उच्च शिक्षा के पुनर्गठन से संबंधित विचार-विमर्श हेतु एक दिवसीय आभासी ई-कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने की। कार्यक्रम के शुरुआत में कुलपति प्रो. शर्मा ने उन सभी वक्ताओं का अभिनंदन किया जिन्होंने अल्पावधि सूचना के बावजूद इस महत्वपूर्ण ई-कार्यशाला हेतु अपने व्यस्ततम समय में से कुछ अवकाश निकाला। इसके पश्चात शिक्षा अध्ययन संकाय के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के सभापति, प्रो. आशीष श्रीवास्तव ने सभी वक्ताओं का परिचय दिया। विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. जी.गोपाल रेड्डी ने औपचारिक रुप से सभी वक्ताओं का स्वागत किया गया। सभापति प्रो. श्रीवास्तव ने ई-कार्यशाला के विषय का परिचय देते हुए सत्रारंभ किया।
डॉ.आरएमएल विवि,अयोध्या के पूर्व कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने अपने संबोधन में कहा कि ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरासत से प्राप्त पुरातन एवं कठोर शिक्षा व्यवस्था से दूर हटते हुए अधिक लचीला तथा सभी को एक साथ लाने वाली पश्चिमी व्यवस्था को अपनाने की आवश्यकता है। वर्धमान विवि, पश्चिम बंगाल के पूर्व कुलपति प्रो. स्मृति कुमार सरकार ने अपने संबोधन में कहा कि कार्यान्वयन में जल्दबाजी किए बिना धैर्य का परिचय दें। नई शिक्षा नीति के पूर्ण कार्यान्वयन से पहले इसको समझने हेतु पर्याप्त समय एवं दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी एवं इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना आवश्यक होगा। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला के पूर्व कुलपति प्रो. एडीएन वाजपेयी ने अपने संबोधन में कहा कि प्रतिष्ठित तथा नव स्थापित विश्वविद्यालय में विलय के लिए नीतिगत रुपरेखा का निर्माण होना चाहिए। यह स्थापित विश्वविद्यालय के समय परिक्षणित मूल्य प्रणाली के माध्यम से नव स्थापित संस्थानों के अपेक्षित परामर्श को सुनिश्चित करेगा। यूपी स्टेट काउंसिल ऑफ हायर एडूकेशन के अध्यक्ष एवं बीएचयू, वाराणसी के पूर्व कुलपति, प्रो. गिरीष चंद्र त्रिपाठी ने अपने संबोधन में कहा कि नई शिक्षा नीति लागू करने से पहले इसका गहन अध्ययन एवं समझ को विकसित करना होगा। एनईपी को लागू करने की बात तभी की जानी चाहिए जब इसके सभी प्रावधानों को समझा गया हो एवं सभी हितधारकों को इसके बारे में समझाया गया हो।
गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय, बंसवार राजस्थान के पूर्व कुलपति प्रो, कैलाश सोडाणी ने अपने संबोधन में कहा कि संघ लोक सेवा आयोग की तरह अध्यापकों का चयन करना होगा जिससे कि प्रक्रियाओं में अंतर्निहित कमियों से बचा जा सके। इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.नागेश्वर राव ने अपने संबोधन में कहा कि एनईपी के नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु विश्वविद्यालयों को समयबद्ध तरीके से अपने संविधि, अध्यादेशों में परिवर्तन करना होगा। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई के पूर्व कुलपति प्रो. राम मोहन पाठक ने अपने संबोधन में कहा कि नई शिक्षा नीति के सभी नीतियों को समझाने हेतु सभी राज्य सरकारों से संपर्क स्थापित किया जाना चाहिए। इससे सर्वश्रेष्ठ परिणामों को प्राप्त किया जा सकेगा। अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय, बिलासपुर के कुलपति प्रो. जी.डी.शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि दोहराव से बचने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर संविधि, अध्यादेशों की निर्माण किया जाना चाहिए।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने समापन सत्र की अध्यक्षता की। विश्वविद्यालय के आईक्यूएसी प्रकोष्ठ के समन्वयक, प्रो. आनन्द प्रकाश ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया।