Wednesday, October 26, 2022

‘हिंदी साहित्य और सिनेमा’

‘हिंदी साहित्य और सिनेमा’ विषय पर 'साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार और ज्ञानपीठ नवलेखन अनुशंसा पुरस्कार से सम्मानित  चर्चित लेखिका इंदिरा दाँगी' से डॉ. आदित्य मिश्रा की बातचीत-                

                                                                    (चित्र-प्रतीकात्मक, साभार-गूगल डॉट कॉम)
प्रश्न 1. हिंदी साहित्य आधारित कुछ ऐसी फिल्मों के संक्षेप में बताइये जिन्हें आपने देखा हो ? 
उत्तर : यों तो हिंदी के कई एक क्लासिक उपन्यासों और कहानियों पर फिल्में बनी हैं और बन रही हैं । टेलीविज़न की दुनिया में भी धारावाहिक और टेलीफिल्में बनती रहती हैं जो घोषित-अघोषित तौर पर हिंदी साहित्य की रचनाओं पर आधारित या उनसे प्रेरित रहती हैं । मैंने इनमें से कुछेक फिल्में देखी हैं जो हिंदी, बांग्ला या अंग्रे़जी साहित्य की कृतियों पर आधारित हैं । अब तो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी आपको कई एक सीरियल ऐसे मिल जायेंगे जो किसी साहित्यिक रचना का चुराया हुआ संस्करण मालूम पड़ते हैं । रजनीगन्धा, तीसरी क़सम , गोदान, शतरंज के खिलाड़ी जैसी कुछ फिल्में मैंने देखी हैं जो हिंदी के उपन्यासों और कहानियों पर बनी हैं ।

प्रश्न 2. क्या ‘हिंदी साहित्य की कथावस्तु एवम्‌ शैली’ सिनेमा जैसे तकनीकी माध्यम के अनुकूल होती है ? 
उत्तर : हिंदी साहित्य ही क्यों, किसी भी भाषा का साहित्य हो, उसको कभी अपने सिनेमा से सर्टिफिकेट लेने की आवश्यकता नहीं है ! सिनेमा को साहित्य की दरकार होती है, साहित्य को सिनेमा की नहीं ! आज हिंदी फिल्में अगर कम सफल हो रही हैं और दक्षिण की फिल्में अधिक सफल तो इसके पीछे मुख्य कारण पटकथा और सम्वाद हैं । ये सब फिल्म को योग्य लेखक से मिल पाता है। अफसोस की बात है कि हिंदी साहित्य की मुख्य धारा के अधिकांश लेखक फिल्म की पटकथा लिखने में रुचि नहीं रखते क्योंकि इसे हमारे यहाँ उच्च दर्ज़ा नहीं दिया जाता साहित्य में । गोकि रेणु, कमलेश्वर और उनसे पहले प्रेमचन्द भी गये फिल्मों की तरफ़ लेकिन ये नाम बहुत थोडे़ हैं; और उसमें से भी प्रेमचन्द का  अनुभव अच्छा नहीं रहा सिनेमा का जैसा कि और भी बहुत सारे लेखकों का कुछ-कुछ ऐसा ही तज़ुर्बा था । सिनेमा वालों की बात करूँ तो उनमें से भी बहुत थोड़े ही लोग होते हैं जिन्हें साहित्य की समझ होती है। और जिनको साहित्य की समझ होती है वे उस पर अच्छी  फिल्में बना ले जाते हैं । 
प्रश्न 3. क्या ‘हिंदी साहित्य पर आधारित हिंदी फिल्में’ दर्शकों के अंदर सिनेमा के प्रति आकर्षण पैदा करने की क्षमता रखती हैं ?
उत्तर. हिंदी साहित्य से वे ही उपन्यास या कहानियाँ फिल्म वाले लेते हैं जो पहले ही या तो क्लासिक का दर्ज़ा पा चुकी हैं या पर्याप्त ख्याति पा रही हैं । कहने का मकसद है कि रचना तो अपनी सफलता और सार्थकता पहले ही सिद्ध कर चुकी है ; अब रहा सवाल फिल्म में आकर्षण पैदा करने का तो ये तो फिल्मकार की योग्यता का सवाल है या कलाकारों की योग्यता का ।
प्रश्न 4. हिंदी साहित्य आधारित फिल्मों की सफलता/असफलता के क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर : मुझे लगता है कि हमारे हिंदी फिल्म वाले साहित्य की क्लासिक रचना को सही ट्रीटमेंट दें तो उस पर बनी फिल्म भी क्लासिक का दर्ज़ा पा सकती है । विश्व साहित्य में देखिये कितनी ही कृतियाँ हैं जिनपर हर बीस साल बाद फिल्म बनती है और अपूर्व सफलता पाती है । जैक लंदन की ‘कॉल ऑफ़ द वाइल्ड’ पर कितनी बार फिल्में बनी और सफल भी बहुत हुईं ।ओटीटी पर पिछले दिनों मैंने उनकी कहानी ‘लव ऑफ़ लाइफ’ से प्रेरित सीरियल देखा । तमाम पात्र बदले हुए थे लेकिन कहानी की मूल आत्मा वही थी । महान कृति पर फिल्म या धारावाहिक बनाने के लिये पहले साहित्य की समझ होनी चाहिये और फिल्म विधा की भी। 
(इंदिरा दाँगी मूलतः कहानी, नाटक और उपन्यास लेखिका हैं। इनकी चर्चित रचनाओं में शामिल हैं- हवेली सनातनपुर, एक सौ पचास प्रेमिकाएँ, शुक्रिया इमरान साहब, रानी कमलापति, रपटिले राजपथ आदि)

    (चित्र-प्रतीकात्मक, साभार-गूगल डॉट कॉम)

हिंदी साहित्य एवं सिनेमा विषय पर फ़िल्म एन्ड थिएटर के प्राध्यापक डॉ. विजय कन्नौजिया से डॉ. आदित्य मिश्रा की बातचीत-  

1- क्या हिंदी साहित्य की कथावस्तु एवं शैली हिंदी सिनेमा जैसे तकनीकि माध्यम के अनुकूल होती है?
उत्तर- जी हां बिल्कुल अनुकूल होती हैं क्योंकि साहित्य और सिनेमा का बहुत गहरा संबंध रहा है। हमेशा से ही साहित्य सिनेमा का दर्पण माना जाता है। साहित्य को समझने के लिए समाज को जानना और समझना बहुत जरूरी होता है। एक अच्छा साहित्य तभी अच्छा होता है, जब वह लोगों के दिल व दिमाग में जगह बना ले और लोग उस पर सोचने के लिए मजबूर हो जाएं। साहित्य आधारित सिनेमा हो या सामान्य फिल्म वह तभी प्रभावित करती है जबकि उसे बनाते समय उसका (ट्रीटमेंट) अच्छे से किया गया हो। तकनीकी के सही इस्तेमाल और रिसर्च के साथ कहानी को सामने लाया जाए तब जाकर एक अच्छा सिनेमा तैयार होता है।
फिल्म और टेलीफिल्म की कथा शैली का अपना व्याकरण है। दर्शक कैमरे की तकनीकी भाषा के आधार पर ही रचनात्मकता को देखते एवं परखते हैं। ऐसी स्थिति में दृश्य-माध्यम की भाषा में ध्वनि सम्प्रेषण की प्रक्रिया को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। उसके लिए यह अनिवार्य है कि अतिरिक्त तकनीक का सहारा लेकर दृश्य माध्यम की भाषा को अभिव्यक्त किया जा सके।
बीसवीं शताब्दी के आखिरी दशक में एक महत्वपूर्ण बात यह हुई कि लेखक ही अपने साहित्य पर पटकथा लिखने लगे। इन दौर में मुद्राराक्षस, नासिरा शर्मा, के. के. नायर, रेवती रमन शर्मा, दयानंद अनंत, अनवर अजीम, हरिकृष्ण कौल, मृदुला बिहारी आदि ने कई पटकथाएँ लिखीं।


2- क्या हिंदी साहित्य पर आधारित हिंदी फिल्में दर्शकों के अंदर सिनेमा के प्रति आकर्षण पैदा करने की क्षमता रखती हैं?
उत्तर- जी बिल्कुल रखती है साहित्य पर आधारित हिंदी फिल्मों में सबसे पहला नाम यह है जिसकी वजह से साहित्य और सिनेमा का संबंध हमेशा के लिए बहुत गहरा हो गया और वह फिल्म थी -सारा आकाश (1969) जो कि राजेंद्र यादव द्वारा लिखित थी और दूसरी फिल्म थी- 'उसकी रोटी' (1969) मोहन राकेश द्वारा लिखित। यह दोनों फिल्में उपन्यास पर आधारित थीं। यह दोनों फिल्में 1969 में सामने आई थीं और इन दोनों फिल्मों ने नव यथार्थवादी सिनेमा को जन्म दिया जिसकी वजह से हमारा हिंदी सिनेमा आज तक जाना जाता है और हमेशा जाना जाता रहेगाl आप जब इन दोनों फिल्मों को देखेंगे तब आपके अंदर सिनेमा के प्रति आकर्षण पैदा होगा। 

3- हिंदी साहित्य आधारित फिल्मों की सफलता/असफलता के कारण क्या हैं?
उत्तर- देखिये जैसा कि पहले भी कह चुका हूं कि सिनेमा जो है वह साहित्य का दर्पण है और साहित्य समाज का प्रभावी सत्य। हिंदी साहित्य पर आधारित फिल्मों की सफलता/ असफलता का यही कारण हो सकता है कि कोई भी देश जब तक अपने समाज और साहित्य को अच्छी तरह से ना समझ ले तब तक कोई भी देश अपने सिनेमा को सफल नहीं बना सकता अगर हम उदाहरण के लिए इटालियन सिनेमा की बात करें तो उसने वहां पर जब (बाइसिकल थीव्स 1948) जैसी फिल्म बनी, जिसका निर्देशन विटोरियो डी सिका ने किया था यह फिल्म वहां के एक साधारण आदमी की कहानी पर आधारित थी जिसके साइकिल चोरी हो जाती है और उसी को ढूंढने में पूरी फिल्म निकल जाती है। इसी तरह एक और ईरानी फिल्म है-द हेवन ऑफ चिल्ड्रन (1997), इस फिल्म में एक साधारण परिवार के दो छोटे बच्चे है जो कि भाई बहन है, उनकी कहानी को दर्शाया गया है बहुत ही खूबसूरती तरीके से। कहने का मतलब बस इतना सा है कि जब तक हम अपने यहां के साहित्य और समाज को अच्छी तरह से नहीं समझेंगे तब तक उस पर एक अच्छी फिल्म नहीं बनाई जा सकती और अगर आपने साहित्य और समाज को अच्छी तरह से समझ और परख लिया तो आप एक बेहतरीन सिनेमा को जन्म दे सकते हैं।


Sunday, October 2, 2022

 रामा विश्वविद्यालय में ‘जलसा डांडिया उत्सव-2K22’ में युवाओं ने जमकर लगाए ठुमके

रामा विश्वविद्यालय में दिनांक 01 अक्टूबर-2022 को 'जलसा डांडिया उत्सव-2k22' का समापन समारोह हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। डांडिया के लिए सजे मंच के सामने ग्राउंड में युवा शाम 5 बजे से ही जुटने शुरू हो गए थे, जैसे-जैसे समय बीतता गया, भीड़ बढ़ती गयी और उत्साह का पारा भी High होता गया। रात 9:30 बजे तक रामा विश्वविद्यालय और कानपुर के अन्य शिक्षण संस्थानों से आए युवाओं ने जमकर ठुमके लगाए। इससे पूर्व विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में दिनांक 26 सितम्बर से 01 अक्टूबर तक आयोजित इस कार्यक्रम के समापन समारोह की शुरुआत सबसे पहले विश्वविद्यालय के निदेशक, डॉ. प्रतीक सिंह, निदेशक, डॉ. प्रणव सिंह, कुलपति, डॉ. अमरनाथ बी जे, कुलसचिव, प्रभात रंजन, सीओई, आरके यादव,डीन अकादमिक अफेयर्स, प्रो हरिओम शरण, उप कुलसचिव, डॉ. संदीप शुक्ला और मार्केटिंग हेड, संजय कुमार आदि द्वारा मां सरस्वती एवं विश्वविद्यालय के संस्थापक स्वर्गीय डॉ. बी एस कुशवाह की प्रतिमा के समक्ष पुष्पार्पण के साथ हुई। इस अवसर पर माननीय कुलपति, डीन अकेडमिक अफेयर्स और मार्केटिंग हेड, संजय कुमार ने विद्यार्थियों एवं सभागार में उपस्थित संकाय सदस्यों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों को संबोधित किया। इसके बाद डेकोरेशन, फैंडम क्विज, एकल गायन, युगल गायन, समूह गायन, एकल नृत्य, युगल नृत्य, समूह नृत्य, फैशन शो, काव्य पाठ, लघु फिल्म, फोटोग्राफी और ग्रैफिटी आर्ट प्रतियोगिता के प्रतिभागियों एवं संयोजकों को विश्वविद्यालय के गणमान्य अतिथियों, संकायाध्यक्षों व विभागाध्यक्षों के हाथों मेडल और प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर डॉ. ओमवीर सिंह, रामा आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज, प्रो वैशाली धींगरा, डीन, एफसीएम, प्रो. मनीष धींगर, डीन, आर एंड डी सेल, डॉ. जैस्मी मनु, डीन, नर्सिंग, डॉ रविकांत गुप्ता, डीन, एफजेस, डॉ. अनीता यादव, डीन, एग्रीकल्चर एंड अलॉयड इंडस्ट्रीज, डॉ. कामरान जावेद नकवी, डीन, फार्मास्यूटिकल साईंसेज, डॉ. विकास सिंह, डीन, एफपीएस, सचिन चौधरी, सीनियर ब्रांड मैनेजर समेत विभिन्न विभागों के अध्यक्ष, फैकल्टी मेंबर्स, गैर-शैक्षणिक अधिकारी- कर्मचारी और बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।     


Monday, September 26, 2022

Grand launch of 'Jalsa Dandiya Utsav 2K22' at Rama University

'Jalsa Dandiya Utsav-2k22' started with pomp at Rama University on 26 September-2022 at 10 am. The program, organized in the auditorium of the university, started with the lighting of the lamp in front of the statue of Maa Saraswati and the founder of the university, late Dr. BS Kushwaha. Thereafter, Director of the University Dr. Prateek Singh Kushwaha, Deputy Registrar, Dr. Sandeep Shukla, Dean Academic Affairs, Prof. Hariom Sharan, Dr. PK Singh, Vice Principal, Rama Medical College, Dr. Brijendra Nigam, Principal, Paramedical Sciences, Dr. Omvir Singh, Principal, Rama Ayurvedic Medical College and Deans of various faculties were honored with mementos and bouquets. All the dignitaries congratulated the students and all the members of the university family for 'Jalsa Dandiya Utsav-2k22'.
On this occasion Prof. Vaishali Dhingra, Dean, FCM, Prof. Manish Dhingra, Dean, Research & Development, Dr. Jasmine Manu, Dean, Nursing, Dr. Ravikant Gupta, Dean, FJS, Dr. Anita Yadav, Dean, Agriculture and Allied Industries, Dr. Kamran Naqvi, Dean, Pharmaceutical Sciences, Sanjay Kumar, Marketing Head, Sachin Chaudhary, Sr. Brand Manager, Dr. Rahul Srivastava, HOD, Rama Dental College, Dr. Aditya Mishra, HOD, Journalism and Mass Communication, Samir Mishra, DSW, including Heads of various departments, faculty members, non-academic officers-employees and a large number of students were present.
After the inaugural session, a fandom quiz, decoration competition, photography and graffiti art competition were organized. A large number of students from different faculties of the university participated in these competitions.

रामा विश्वविद्यालय में दिनांक 26 सितंबर-2022 को सुबह 10 बजे से 'जलसा डांडिया उत्सव-2k22' की शुरुआत धूमधाम से हुई। विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत सबसे पहले मां सरस्वती एवं विश्वविद्यालय के संस्थापक स्वर्गीय डॉ. बी एस कुशवाह की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ हुई। तत्पश्चात विश्वविद्यालय के निदेशक डॉ. प्रतीक सिंह कुशवाह, डिपुटी रजिस्ट्रार, डॉ. संदीप शुक्ला, डीन अकादमिक अफेयर्स, प्रो हरिओम शरण, डॉ. पी के सिंह, वाइस प्रिंसिपल, रामा मेडिकल कॉलेज, डॉ बृजेंद्र निगम, प्रिंसिपल, पैरामेडिकल साइंसेस, डॉ. ओमवीर सिंह, प्रिंसिपल, रामा आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज समेत विभिन्न संकायों के डीन को समृति चिन्ह एवं पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया गया। सभी गणमान्य अतिथियों ने विद्यार्थियों एवं विश्वविद्यालय परिवार के सभी सदस्यों को 'जलसा डांडिया उत्सव-2k22' के लिए बधाई दी। 
इस अवसर पर प्रो वैशाली धींगरा, डीन, एफसीएम, प्रो मनीष धींगरा, डीन, रिसर्च एंड डेवलपमेंट, डॉ. जैस्मीन मनु, डीन, नर्सिंग, डॉ रविकांत गुप्ता, डीन, एफजेस, डॉ. अनीता यादव, डीन, एग्रीकल्चर एंड अलॉयड इंडस्ट्रीज, डॉ. कामरान नकवी, डीन, फार्मास्यूटिकल साईंसेज, संजय कुमार, मार्केटिंग हेड, सचिन चौधरी, सिनियर ब्रांड मैनेजर, डॉ. राहुल श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष, रामा डेंटल कॉलेज, डॉ. आदित्य मिश्रा, विभागाध्यक्ष, पत्रकारिता एवं जनसंचार, समीर मिश्रा-डीएसडब्ल्यू, समेत विभिन्न विभागों के अध्यक्ष, फैकल्टी मेंबर्स, गैर-शैक्षणिक अधिकारी- कर्मचारी और बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।।            उद्घाटन सत्र के उपरांत fandom quiz, Decoration competition, Photography और ग्रैफिटी आर्ट कम्पटीशन का आयोजन हुआ। इन प्रतियोगिताओं में बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय से विभिन्न संकायों के विद्यार्थियों ने भाग लिया। 







Saturday, April 10, 2021

जिला गंगा समिति, मोतिहारी में प्रो. पवनेश कुमार समेत तीन प्रतिनिधि नामित

जिला गंगा समिति के गठन हेतु पूर्वी चम्पारण, मोतिहारी की तरफ से महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रबंधन विज्ञान एवं वाणिज्य संकाय के अध्यक्ष प्रो. पवनेश कुमार,  मोतिहारी चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष सुधीर कुमार अग्रवाल और नगर निगम मोतिहारी की मुख्य पार्षद अंजू देवी को पूर्वी चम्पारण, मोतिहारी के जिलाधिकारी शीर्षक कपिल अशोक की तरफ से नामित किया गया है। प्रो. पवनेश को बतौर पर्यावरणविद् विशेषज्ञ, श्री सुधीर को बतौर स्थानीय उद्योगपति एवं श्रीमती अंजू को बतौर राज्य प्रदूषण बोर्ड की प्रतिनिधि नामित किया गया है। इस आशय का पत्र जिलाधिकारी श्री शीर्षक कपिल अशोक ने संयुक्त सचिव, नगर विकास एवं आवास-विकास, सह नोडल पदाधिकारी, राज्य परियोजना प्रबंधन समूह, बिहार, पटना को प्रेषित किया है। तीनों ही सम्मानित सदस्यों ने जिला गंगा समिति में नामित होने पर प्रसन्नता व्यक्त की है। वहीं प्रो. पवनेश ने जिलाधिकारी द्वारा उनपर विश्वास जताने पर आभार जताया और अपने दायित्वों के निर्वहन करने की बात कही। इस अवसर पर केविवि के शिक्षकों विद्यार्थियों एवं मोतिहारी के गणमान्य नागरिकों ने भी नगर के तीन जाने-माने बुद्धिजीवियों के जिला गंगा समिति में नामित होने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बधाई दी है।  

Sunday, March 21, 2021

डॉ. सौरभ मालवीय की पुस्तक ‘भारत बोध’ का हुआ लोकार्पण

सिद्धार्थनगर 20 मार्च। माधव संस्कृति न्यास, नई दिल्ली और सिद्धार्थ विवि. सिद्धार्थनगर द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में डॉ. सौरभ मालवीय की लिखित पुस्तक भारत बोध समेत आठ पुस्तकों का लोकार्पण हुआ। 

‘भारतीय इतिहास लेखन परंपरा : नवीन परिप्रेक्ष्य’ विषय पर अपनी बात रखते हुये मुख्य अतिथि बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी ने कहा कि आजादी के बाद इतिहास संकलन का कार्य हो रहा है। देश को परम वैभव के शिखर पर ले जाने में युवा इतिहासकारों का संकलन कारगर साबित होगा। कार्यक्रम शुभारंभ के दौरान माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, नोएडा परिसर में सहायक प्राध्यापक डॉ. सौरभ मालवीय की लिखित पुस्तक भारत बोध समेत आठ अलग-अलग लेखकों की पुस्तकों का मंत्री व कुलपति द्वारा लोकार्पण किया गया। 

डॉ. द्विवेदी ने कहा कि भारत को पिछड़े और सपेरों का देश कहा गया है, इस विसंगती को दूर करने का कार्य जारी है। भारत के स्वर्णिम इतिहास का संकलन हो रहा है। 

महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (वर्धा, महाराष्ट्र) के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि युवा इतिहासकार भारत का इतिहास लिख सकते हैं। भारत का इतिहास उत्तान पाद, राम कृष्ण, समुद्र गुप्त, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राम- कृष्ण जैसे अनेक महापुरुषों से है। इतिहास वेद, ज्ञान, यश, कृति, पुरूषार्थ और संघर्ष का होता है। इतिहास में सच्चाई दिखने वाला होता है। आजादी के पहले कारवां चलता गया, हिंदोस्तां बढ़ता गया के आधार पर इतिहास लिखा गया। गोरी चमड़ी वाले अंग्रेज भारत कमाने आए और यहीं रह गये। बाद में हमारा इतिहास लिख दिया। वास्कोडिगामा जान अपसटल को चिट्ठी देने के लिए खोज में निकला था, जिसे लोग भारत की खोज करता बताते हैं। इसी इतिहास को युवा इतिहासकार बदलेंगे। 

अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के संगठन सचिव डॉ. बालमुकुंद पांडेय ने कहा कि अभी तक जिस इतिहास को भारत वर्ष में हम पढ़ते और पढ़ाते हैं वह दासता के प्रतिरूप का इतिहास है, जबकि भारत का सही इतिहास कभी उसके वास्तविक स्वरूप में प्रस्तुत नहीं किया गया था। भारत के गौरवशाली परम्पराएँ और लोक मान्यता को हमें जानने और लिपिवध करने की जरूरत है। भारत के स्वर्णिम इतिहास को भारत की दृष्टि से देखना होगा। 

नालंदा विश्वविद्यालय (बिहार) के कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि डार्विन की थ्यौरी में बंदर से मनुष्य बनने की कल्पना बताया गया है, जबकि ब्रह्मा से मनुष्य की रचना हुई है। भगवान हमारे इष्ट हैं। ब्रिटिश इंडिया कंपनी ने हमे विकृति मानसिकता का बना दिया। हम दिन ब दिन अंग्रेजों की बेडियों में जकड़े गये। हमें सांस्कृतिक परंपरा का बोध नहीं था। स्वतंत्रता के पश्चात हम सांस्कृतिक पुर्नउत्थान के लिए खड़े हुए हैं। अंग्रेजों ने किताबों में ऐसी बातें लिखी कि हम हीन भावना से ग्रसित हुए। हमने ग्रंथ, वेद, रामायण, पुराण पढ़ना छोड़ दिया, लेकिन हमे सारस्वत सरस्वती का बोध यहीं हुआ है। सब सास्वत है। 

अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. सुरेंद्र दूबे ने कहा कि भारत का इतिहास केवल राजा रजवाड़ों और उनके ऐसे आराम का इतिहास नहीं है, बल्कि भारत का इतिहास लोक का इतिहास है। हम इसका सहज अनुभव राम राज्य से कर सकते हैं।


 कार्यक्रम का संचालन आईसीएचआर नई दिल्ली के डॉ. ओम उपाध्याय व आभार डॉ. सच्चिदानंद चौबे ने किया। इस कार्यक्रम में आशा दूबे, डॉ. सौरभ मालवीय, सौरभ मिश्रा, डॉ. रत्नेश त्रिपाठी, डॉ हर्षवर्धन एवं आनंद समेत 19 प्रांतों के विषय विशेषज्ञ व इतिहासरकार मौजूद रहे।

Sunday, August 16, 2020

पूर्व छात्र संघ, जेएनयू और केविवि-मोतिहारी, हिमाचल प्रदेश केविवि, हिंदी विवि, वर्धा, उड़ीसा केविवि व केविवि गुजरात के संयुक्त तत्वावधान में वेबिनार का आयोजन

भारतीय ज्ञान के आगे खड़ी ब्रिटिश शिक्षा नीति की दीवारों को गिराएगी नई शिक्षा नीति-प्रो. केसी अग्निहोत्री

प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल, प्रो. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री, प्रो. संजीव कुमार शर्मा समेत अन्य कुलपति, रजिस्ट्रार व जाने-माने शिक्षाविदों ने रखे विचार


(15 अगस्त, 2020)


भारत में 185 साल से जो शिक्षा नीति चली आ रही थी, उसमें उद्देश्य था कि भारतीयों को मानसिक रुप से गुलाम बनाना है। पुराने नीति निर्माताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वे अपने उद्देश्य में एकदम सफल रहे। मैं हैरान हूं कि उन्होंने एक भी कॉमा या फुल स्टॉप की गड़बड़ी नहीं की। अब तक जो व्यवस्था चलाते रहे वे मानते हैं कि हिंदुस्तान का ज्ञान-विज्ञान किसी काम का ही नहीं है, सब यूरोप का है। नई शिक्षा नीति के बारे में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति यह मानकर चलती है कि हिंदुस्तान में इतनी ऊर्जा, मेधा और अवसर हैं कि इनका ठीक प्रकार से सदुपयोग कर लिया जाए तो भारत बहुत आगे जा सकता है। हमारा जितना सदियों का ज्ञान है उसके आगे ब्रिटिश शिक्षा नीति ने दीवारें खड़ी की हैं, उन दीवारों को नई शिक्षा नीति हटाएगी। ये बातें हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री ने पूर्व छात्र संघ, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली और केविवि-मोतिहारी, हिमाचल प्रदेश केविवि, हिंदी विवि, वर्धा, उड़ीसा केविवि व केविवि गुजरात के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित वेबिनार में कही।


“आत्म निर्भर भारत के लिए नई शिक्षा नीति-2020 के आलोक में ज्ञानयुक्त समाज का निर्माण” विषय पर आयोजित इस वेबिनार की शुरुआत राष्ट्रीय गीत और सरस्वती वंदना के साथ हुई। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. महीप ने स्वागत भाषण दिया। इसके बाद कार्यक्रम के सचिव व पूर्व छात्र संघ, जेएनयू के महासचिव डॉ. धीरज कुमार सिंह ने अपना वक्तव्य दिया। इसके पश्चात पूर्व छात्र संघ, जेएनयू के अध्यक्ष राजेश कुमार ने सभी विद्वानों एवं विषय का परिचय देते हुए अपनी बात रखी। जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रमोद कुमार ने उद्घाटन वक्तव्य दिया। प्रारुप नई शिक्षा नीति, समिति के सदस्य प्रो. एम.के. श्रीधर ने बीज वक्तव्य दिया।


महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति ने प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने नई शिक्षा नीति के बारे में अपने संबोधन में कहा कि इसका प्रारुप पहले ही आ गया था और जुलाई-2020 में भी विवि में इस विषय पर कार्यक्रम हुआ था। आज जो लोग इससे जुड़े हैं उनमें से कुछ लोग पहले भी कार्यक्रम से जुड़े थे। जो नई शिक्षा नीति आई है आज यह सही मायने में भारतीय है। यह भारतीय भाषाओं के सम्मान को बढ़ाती है। भारतीय भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों का निर्माण करना, उपलब्ध सामग्री का अनुवाद कराना, विद्यार्थियों तक पहुंचाना आदि योजनाएं केवल सरकार की नहीं है बल्कि शैक्षणिक जगत के जुड़े हम सभी लोगों का भी काम है। कार्ययोजना हमें बनानी होगी। नई शिक्षा नीति के खिलाफ भ्रांतियों का सामना करने के लिए प्रो. शर्मा ने जनसम्पर्क, जनसंचार और जनसंवाद को जरुरी बताया।


महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने अपने संवोधन में पूर्व वक्ता कुलपति प्रो. शर्मा की बातों से सहमति जताते हुए कहा कि यह भारतीय शिक्षा नीति है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति है। सच्चाई यह है कि यह 185 वर्षों बाद आई शिक्षा नीति है। यह 34 वर्षों बाद आई शिक्षा नीति है, इस रुप में इसे समझने आवश्यकता नहीं है। 1835 में जो शिक्षा नीति आई थी, उस शिक्षा नीति का 1992 में एक्सटेंशन मात्र हुआ है। 1968 में कोठारी ने जरुर कोशिश की थी कि गाड़ी को पटरी पर लाया जाए। लेकिन उनकी बातें केवल सुभाषित होकर रह गयीं। अब पहली बार ऐसी शिक्षा नीति आई है जिसमें सभी भारतीय भाषाओं के लिए समान अवसर प्राप्त होता है और वास्तविक संदर्भों में भारत की बहुभाषिकता को ताकत के रुप में मानते हुए प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति बहुभाषिक हो, यह इसकी दिशा में प्रस्ताव प्रस्तुत करता है। पहली बार भारत केंद्रित शिक्षा प्रणाली है।


केंद्रीय विश्वविद्यालय, उड़ीसा के कुलपति प्रो. आई. ब्रम्ह्मम ने नई शिक्षा नीति की प्रशंसा करते हुए इसे भारत की आवश्यकता के अनुरुप बताया। वहीं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व जाने-माने शिक्षाविद श्रीनिवासजी ने अपने संबोधन में कहा कि स्वतंत्रता दिवस के दिन जेएनयू के पूर्व छात्रों ने इस जरुरी विषय को चुना है, इसका बहुत महत्व है। नई शिक्षा नीति के माध्यम से हम लोग 185 वर्षों बाद अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं। भारत में शिक्षा, मनुष्य को मनुष्य बनाने पर बल देता है, जिसे विवेकानंद जी ने मनुष्य के आंतरिक शक्तियों को जागृत करने की बात कही है। यह 

आवश्यक है कि भारत के युवा भारत को तो समझें, तभी हम विश्व में अपना स्थान बनाएंगे।

 

अध्यक्षीय संबोधन में केंद्रीय विश्वविद्यालय गुजरात के कुलपति प्रो. रमा शंकर दूबे ने पूर्व छात्र संघ, जेएनयू को इस महत्वपूर्ण विषय पर जाने-माने विद्वानों को आमंत्रित कर विमर्श कराने के लिए धन्यवाद दिया। अपने पूर्व वक्ताओं की बातों को क्रम से रखते हुए उन्होंने सहमति जताते हुए नई शिक्षा में निहित प्रमुख बिंदुओं की चर्चा की। भारत को चाणक्य, आर्यभट्ट, सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन और महामना मदन मोहन मालवीय का देश बताते हुए अपनी भारतीयता, ज्ञान-विज्ञान पर गर्व करने की बात कही।

महात्मा गांधी केन्द्रीय विवि के प्रबंधन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. पवनेश कुमार ने कार्यक्रम के निष्कर्ष को बताते हुए कहा आज बौद्धिक जनों ने जो मंथन किया वह भारत के कल का निर्माण होगा और इससे जो अमृत निकलेगा, उससे हम सभी लाभान्वित होंगे। कार्यक्रम का संचालन केन्द्रीय विवि, गुजरात के डॉ. अतानु महापात्रा ने किया। इस अवसर पर केविवि की डॉ. सपना सुगंधा, डॉ. दिनेश व्यास, डॉ. स्वाति कुमारी, कमलेश कुमार समेत देश के कई विश्वविद्यालयों के शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी व शिक्षाविद उपस्थित रहे।

केविवि में उच्च शिक्षा का संचालन, पुनर्गठन तथा क्रियान्वयन की रुपरेखा पर हुई चर्चा

 *राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की कार्ययोजना विषय पर ई-कार्यशाला*

*कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने की अध्यक्षता, प्रो. मनोज दीक्षित, प्रो. स्मृति कुमार सरकार, प्रो.एडीएन वाजपेयी आदि वक्ताओं ने रखे विचार*

(6 अगस्त, 2020)

महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की कार्ययोजना के क्रियान्वयन की रुपरेखा, संचालन तथा उच्च शिक्षा के पुनर्गठन से संबंधित विचार-विमर्श हेतु एक दिवसीय आभासी ई-कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने की। कार्यक्रम के शुरुआत में कुलपति प्रो. शर्मा ने उन सभी वक्ताओं का अभिनंदन किया जिन्होंने अल्पावधि सूचना के बावजूद इस महत्वपूर्ण ई-कार्यशाला हेतु अपने व्यस्ततम समय में से कुछ अवकाश निकाला। इसके पश्चात शिक्षा अध्ययन संकाय के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के सभापति, प्रो. आशीष श्रीवास्तव ने सभी वक्ताओं का परिचय दिया। विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. जी.गोपाल रेड्डी ने औपचारिक रुप से सभी वक्ताओं का स्वागत किया गया। सभापति प्रो. श्रीवास्तव ने ई-कार्यशाला के विषय का परिचय देते हुए सत्रारंभ किया।

डॉ.आरएमएल विवि,अयोध्या के पूर्व कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने अपने संबोधन में कहा कि ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरासत से प्राप्त पुरातन एवं कठोर शिक्षा व्यवस्था से दूर हटते हुए अधिक लचीला तथा सभी को एक साथ लाने वाली पश्चिमी व्यवस्था को अपनाने की आवश्यकता है। वर्धमान विवि, पश्चिम बंगाल के पूर्व कुलपति प्रो. स्मृति कुमार सरकार ने अपने संबोधन में कहा कि कार्यान्वयन में जल्दबाजी किए बिना धैर्य का परिचय दें। नई शिक्षा नीति के पूर्ण कार्यान्वयन से पहले इसको समझने हेतु पर्याप्त समय एवं दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी एवं इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना आवश्यक होगा। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला के पूर्व कुलपति प्रो. एडीएन वाजपेयी ने अपने संबोधन में कहा कि प्रतिष्ठित तथा नव स्थापित विश्वविद्यालय में विलय के लिए नीतिगत रुपरेखा का निर्माण होना चाहिए। यह स्थापित विश्वविद्यालय के समय परिक्षणित मूल्य प्रणाली के माध्यम से नव स्थापित संस्थानों के अपेक्षित परामर्श को सुनिश्चित करेगा। यूपी स्टेट काउंसिल ऑफ हायर एडूकेशन के अध्यक्ष एवं बीएचयू, वाराणसी के पूर्व कुलपति, प्रो. गिरीष चंद्र त्रिपाठी ने अपने संबोधन में कहा कि नई शिक्षा नीति लागू करने से पहले इसका गहन अध्ययन एवं समझ को विकसित करना होगा। एनईपी को लागू करने की बात तभी की जानी चाहिए जब इसके सभी प्रावधानों को समझा गया हो एवं सभी हितधारकों को इसके बारे में समझाया गया हो।

गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय, बंसवार राजस्थान के पूर्व कुलपति प्रो, कैलाश सोडाणी ने अपने संबोधन में कहा कि संघ लोक सेवा आयोग की तरह अध्यापकों का चयन करना होगा जिससे कि प्रक्रियाओं में अंतर्निहित कमियों से बचा जा सके। इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.नागेश्वर राव ने अपने संबोधन में कहा कि एनईपी के नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु विश्वविद्यालयों को समयबद्ध तरीके से अपने संविधि, अध्यादेशों में परिवर्तन करना होगा। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई के पूर्व कुलपति प्रो. राम मोहन पाठक ने अपने संबोधन में कहा कि नई शिक्षा नीति के सभी नीतियों को समझाने हेतु सभी राज्य सरकारों से संपर्क स्थापित किया जाना चाहिए। इससे सर्वश्रेष्ठ परिणामों को प्राप्त किया जा सकेगा। अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय, बिलासपुर के कुलपति प्रो. जी.डी.शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि दोहराव से बचने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर संविधि, अध्यादेशों की निर्माण किया जाना चाहिए।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने समापन सत्र की अध्यक्षता की। विश्वविद्यालय के आईक्यूएसी प्रकोष्ठ के समन्वयक, प्रो. आनन्द प्रकाश ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया।