Thursday, January 8, 2015

मोबाइल है मगर शौचालय नहीं.


 
 गंदगी से बीमारी फैलती है। जगह-जह फैला कचरा और खुले में शौच बीमारी को बुलावा देने जैसा है, ये जानने के बावजूद भारत में गंदगी की समस्या एक आम बात है। लोग अपना घर-द्वार तो साफ ऱखना जानते हैं लेकिन यही लोग सड़कों पर कूड़ा-कचरा फेंकने से बाज नहीं आते।  रेलवे स्टेशनों, बस स्टेशनों, रेल की पटरियों पर आम लोग निसंकोच केले का छिलका, बिस्कुट-नमकीन के पैकेट, खाने के पैकेट, पानी और कोल्डड्रिंक्स के बॉटल आदि फेंक देते हैं। कई बार सार्वजनिक स्थानों पर सफाई से संबंधित दिशा निर्देश या प्रेरक संदेश लिखे रहते हैं जैसे 'आप जो गंदगी फैला रहे हैं, उसे आप जैसा ही कोई इंसान साफ करता है।' इसके बावजूद लोग गंदगी फैलाने से नहीं चूकते। आमतौर पर सार्वजनिक स्थानों, ट्रेनों आदि में उपलब्ध शौचालयों के उपयोग में भी लोग सावधानी नहीं बरतते और अपना काम निपटाकर दूसरों के लिए समस्या छोड़ जाते हैं। सार्वजनिक शौचालय में गंदगी की समस्या में, सफाईकर्मियों की संख्या में कमी या उनकी लापरवाही के अतिरिक्त जनता की गलत आदतों का योगदान भी रहता है। लोग ट्रेन के शौचालयों में पर्याप्त पानी नहीं डालते या डालते भी हैं तो इधर-उधर पानी फैला देते हैं जिससे उनके बाद के व्यक्तियों के लिए समस्या खड़ी हो जाती है।
                          व्यक्तिगत स्तर पर गांवों में लोगों के घरों में शौचालयों का न होना एक बड़ी समस्या का रुप ग्रहण कर चुका है। आश्चर्य की बात है कि बड़ी संख्या में ग्रामीण लोगों के घरों में टेलीविजन और डीटीएच के कनेक्शन मौजूद हैं। एक घर में दो-दो, तीन-तीन मोबाइल या परिवार के अधिकांश सदस्यों के हाथ में मोबाइल है। इनमें से कुछ लोग मोबाइल पर इंटरनेट के प्रयोगर्ता हैं। इस प्रकार के लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है लेकिन इनमें से अधिकांश के घरों में शौचालय नहीं है। ग्रामीण विकास मंत्रालय की मासिक पत्रिका कुरुक्षेत्र के दिसंबर 2014 के अंक मुताबिक वर्ष 2011 में ग्रामीण क्षेत्रों के आधे से ज्यादा घरों में मोबाइल अथवा टेलिफोन थे जबकि इसकी तुलना में सिर्फ एक तिहाई घरों में ही शौचालय बने थे। केंद्र सरकार के अतिरिक्त विभिन्न राज्यों की सरकारें लोगों के घरों में शौचालय निर्माण के लिए कार्य करती आई हैं लेकिन इतनी विशाल जनसंख्या वाले देश में जहां की अधिकांश जनता गांवों में ही निवास करती है, प्रत्येक घऱ में शौचालय निर्माण करा पाना सरकारों के लिए बहुत कठिन कार्य है। सरकारों द्वारा कागजों में सभी के घरों में शौचालय के निर्माण हो सकते हैं लेकिन हकीकत में सभी के घरों में शौचालय का निर्माण लोगों की व्यक्तिगत पहल के बगैर संभव नहीं है।
                          केंद्र सरकार इस दिशा में प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को खुद हाथ में झाड़ू लेकर दिल्ली के वाल्मिकी बस्ती में सफाई करके 'स्वच्छ भारत अभियान' की शुरुआत क'स्वच्छ भारत अभियान'के एक भाग के रुप में प्रत्येक पारिवारिक इकाई के अंतर्गत घरेलू शौचालय की इकाई लागत को 10000 से बढ़ाकर 12000 रुपये कर दिया गया है और इसमें हाथ धोने, शौचालय की सफाई एवं भंडारण को भी शामिल किया गया है। इस तरह के शौचलय के लिए सरकार की तरफ से मिलने वाली सहायता 9000  और इसमें राज्य सरकार का योगदान 3000 रुपये होगा। जम्मू एवं कश्मीर एवं उत्तरपूर्व राज्यों एवं विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को मिलने वाली सहायता 10800 रुपये होगी जिसमें राज्य का योगदान 1200 रुपये होगा। अन्य स्रोतों से अतिरिक्त योगदान करने की स्वीकार्यता होगी।
                  जो लोग मोबाइल खरीद सकते हैं, डीटीएच के कनेक्शन ले सकते हैं, मोबाइल पर इंटरनेट का प्रयोग कर सकते हैं उनके घरों में शौचालय का न होना उनकी लापरवाही को ही दर्शाता है। ऐसे लोगों को न सिर्फ अपने घरों पर अपने खर्चे पर शौचालय का निर्माण कराना चाहिए बल्कि अपने आस-पास के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए। ग्रामीण तबके के पढ़े-लिखे लोग सरकार द्वारा मिल रहे सहायता राशि की जानकारी आमलोगों तक पहुंचा सकते हैं। सरकारी योजना का लाभ सामान्य ग्रामीण ले सकें इसके लिए ग्राम-प्रधान व संबंधित इकाई से संपर्क कर प्रत्येक घर में शौचालय का निर्माण सुनिश्चित कराया जा सकता है।ग्रामीण क्षेत्रों में शौच जाते समय किसी युवती या महिला के साथ बलात्कार या बलात्कार की कोशिश की खबरें हमें आए दिन समाचार पत्रों में देखने को मिल जाती हैं। ऐसी स्थिति में प्रत्येक घर में शौचालय के निर्माण हो जाने से लोगोंको न सिर्फ स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभ होगा बल्कि युवतियों और महिलाओं के साथ शौच जाते समय होने वाली छेड़खानी और बलात्कार की घटनाएं रोकी जा सकती हैं।

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