Thursday, June 4, 2020

‘संकट से बचना है तो भारतीय परंपराओं का अनुकरण करना होगा’


 

केविवि में ‘आत्मनिर्भर भारतः अवसर एवं चुनौतियाँ’ विषय पर वेबिनार

पद्मश्री अशोक भगत, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो.टी.एन.सिंह, व आईआईएम लखनऊ के प्रो.धर्मेंद्र सिंह सेंगर ने दिया व्याख्यान

कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने की अध्यक्षता, प्रबंधन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो.पवनेश कुमार रहे संयोजक
24 मई 2020
गांधी जी ने कहा था कि गांव के लोग गांव में ही रहें, स्थानीय कार्यों में संलग्न हों तो हम लोग विकास कर लेगें। लेकिन देश में औद्योगिकरण शुरु हुआ। उद्योगों के अमानवीय व्यवहार से लोग आज गांवों की ओर लौट रहे हैं। जो लोग लौट रहे हैं बहुत ही दयनीय ज़िंदगी जी रहे थे। इंसानों ने लालचवश प्रकृति का दोहन किया-शोषण किया तो प्रकृति ने भी बदला लिया और औकात बता दिया। हमें पुनः अपने मूल्यों की ओर लौटने की आवश्यकता है। तभी हम आत्मनिर्भर हो सकते हैं। देश के प्रधानमंत्री इसे महसूस कर रहे हैं और आत्मनिर्भर भारत के लिए कदम बढ़ाया है। लेकिन जो तंत्र है वह समर्पण के साथ सहयोग करे तो ही भारत आत्मनिर्भर होगा। ये बातें विकास भारती, बिशुनपुर, झारखंड के सचिव पद्मश्री अशोक भगत ने महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा आत्मनिर्भर भारत: अवसर एवं चुनौतियाँ’ विषय पर आयोजित वेबिनार में बतौर मुख्य अतिथि कही।

वेबिनार के विशिष्ट अतिथि व महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. टी.एन.सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि आज हम सभी लोग एक सुक्ष्म जीव के कारण लॉकडाउन हो गये हैं। दुनिया के बड़े-बड़े देश जो अपनी चौधराहट दिखाते थे, उन लोगों ने इसके आगे घुटने टेक दिये हैं। हम भारत के लोगों को भी अनेक तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है लेकिन भारत के लोगों के इरादे बहुत बड़े हैं। हम सभी भविष्य के भारत की चर्चा कर रहे हैं। आज इतनी बड़ी संख्या में जो लोग वापस घर आ रहे हैं। वे एक नये तरह की अनुभूति कर रहे हैं। ये लोग हमारी संपदा हैं। इनके ऊपर हमें गर्व करना चाहिए। गांधी जी का भी सपना था कि हर हाथ को काम मिले और जो जहां है वहीं काम मिले। गांधी जी की इच्छानुसार हर व्यक्ति स्वालंबी हो जाए तो समाधान हो सकता है। आज अगर कृषि योग्य भूमि घट रही है। फिर भी तकनीकि की मदद से हम लाभ उठा सकते हैं। जो चीजें हम दूसरी जगहों से खरीदते हैं, कोशिश होनी चाहिए आस-पास ही उसका उत्पादन हो। स्वालम्बन के लिए भारतीय चिंतन के अनुसार हमारे पास जो है उस पर स्वाभिमान होना चाहिए। उसका सकारात्मक ढंग से उपयोग करना चाहिए। आज पूरा विश्व भारत की तरफ देख रहा है। कोरोना को लेकर जो थोड़ी सी उम्मीद दिख रही है वह भारत से है। हमारे हर्बल उत्पादों में, आयुर्वेद में बहुत क्षमता है।  फार्मा सेक्टर में संभावना है। भारत समेत पूरे विश्व के आईटी सेक्टर के संचालन में भारतीयों का बहुत योगदान है। इसका केंद्र भारत बने तो अपार संभावनाएं हैं। प्रतिस्पर्धा का सामना करते हुए उत्पादन बढ़ाना होगा। वेंटिलेटर और मास्क हम नहीं बनाते थे। लेकिन इस दिशा में भी हमने मजबूती से कदम बढ़ा दिया है। हम लोग अपनी परंपराओं पर यकीन करें, उनका अनुसरण करें तो हम दुनिया को राह दिखा सकते हैं और आज हम लोग यह कर रहे हैं। भारत दुनिया के लोगों को हाथ जोड़कर अभिवादन करना सीखा रहा है। दुनिया को यही संदेश है कि संकट से बचना है तो भारतीय परंपराओं का अनुकरण करें। बाहर से घर आने पर हाथ-पैर धोने, चप्पल बाहर उतारने और कपड़े साफ करने जैसे काम आज संकट पड़ने पर किया जा रहा है वह काम भारत में पहले से होता आ रहा है। आज उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए हम आगे बढ़ सकते हैं।

वेबिनार के मुख्य वक्ता, आईआईएम लखनऊ के प्रो.धर्मेंद्र सिंह सेंगर ने कहा कि भारत की आत्मा गांवों में रहती है। गांव का युवक आत्मनिर्भर होगा तो भारत आत्मनिर्भर होगा। जितनी बड़ी महामारी होती है बचाव तंत्र भी उतना ही मजबूत होना चाहिए। भारत में अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित करना होगा और लोगों को इस पर विश्वास भी करना सीखाना होगा। जो निर्देश सरकार द्वारा दिये गये तबलीगी जमात के लोगों ने उस पर समय रहते विश्वास कर लिया होता तो कोरोना संकट के इस दौर में भी भारत में स्थिति दूसरी होती। आने वाले समय में क्लाइमेट चेंज के कारण वर्तमान संकट से भी बड़ी महामारी हो सकती है। इससे बचने के लिए हमें डिजिटल टेक्नॉलॉजी को मजबूत करना होगा। आगे कहा कि आज जो लोग शहरों से गांव लौट रहे हैं, उनके पास पैसा नहीं है! उनके गांव अगर उन्हें रोजगार देते तो वे जाते ही क्यों? वे गांव में लौटकर आ रहे हैं इसका मतलब है कि उन्हें अभी भी गांव पर विश्वास है। हम आत्मनिर्भर भारत की चर्चा कर रहे हैं। गांव का आदमी तभी आत्म निर्भर होगा जब उस पर भी कोई निर्भर हो जाए। गांव का आदमी अपने उद्यम व सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर इतना सशक्त हो जाए कि बाजार उस पर निर्भर हो जाए। इस विषय पर ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों व एनजीओ के लोगों को जाकर चर्चा करनी चाहिए और रास्ता निकालना चाहिए।

विवि के कुलपति प्रो.संजीव कुमार शर्मा ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में इस महत्वपूर्ण विषय पर व्याख्यान देने के लिए तीनों ही विद्वान वक्ताओं एवं देशभर से जुड़े सहभागियों की प्रसंशा की। प्रो.शर्मा ने आगे कहा कि वक्ताओं ने केवल सैद्धांतिक विषयों पर प्रकाश नहीं डाला बल्कि व्यवहारिक दृष्टि भी सामने रखी। प्रो.पवनेश कुमार व उनकी टीम की प्रशंसा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरु की गयी योजना पर इतनी सार्थक चर्चा कराने के लिए आभार जताया।

वेबिनार के संयोजक व प्रबंधन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. पवनेश कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि तीनों ही वक्ता अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। इन्होंने इतना सारगर्भित व सार्थक व्याख्यान दिया कि सहभागियों द्वारा उठाये गये सवालों के जवाब उसमें निहित है। प्रबंधन विज्ञान विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ.अल्का लल्हाल ने वेबिनार का संचालन किया जबकि सहायक प्रोफेसर डॉ.स्वाति कुमारी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर केविवि की डॉ.सपना सुगंधा, प्रो. विकास पारीक, डॉ. दिनेश व्यास, कमलेश कुमार समेत माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के डॉ.आदित्य मिश्रा समेत केविवि व देश भर के अन्य विश्वविद्यालयों से बड़ी संख्या में शिक्षक व विद्यार्थियों ने ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराई।

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