प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल, प्रो. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री, प्रो. संजीव कुमार शर्मा समेत अन्य कुलपति, रजिस्ट्रार व जाने-माने शिक्षाविदों ने रखे विचार
(15 अगस्त, 2020)
भारत में 185 साल से जो शिक्षा नीति चली आ रही थी, उसमें उद्देश्य था कि भारतीयों को मानसिक रुप से गुलाम बनाना है। पुराने नीति निर्माताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वे अपने उद्देश्य में एकदम सफल रहे। मैं हैरान हूं कि उन्होंने एक भी कॉमा या फुल स्टॉप की गड़बड़ी नहीं की। अब तक जो व्यवस्था चलाते रहे वे मानते हैं कि हिंदुस्तान का ज्ञान-विज्ञान किसी काम का ही नहीं है, सब यूरोप का है। नई शिक्षा नीति के बारे में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति यह मानकर चलती है कि हिंदुस्तान में इतनी ऊर्जा, मेधा और अवसर हैं कि इनका ठीक प्रकार से सदुपयोग कर लिया जाए तो भारत बहुत आगे जा सकता है। हमारा जितना सदियों का ज्ञान है उसके आगे ब्रिटिश शिक्षा नीति ने दीवारें खड़ी की हैं, उन दीवारों को नई शिक्षा नीति हटाएगी। ये बातें हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री ने पूर्व छात्र संघ, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली और केविवि-मोतिहारी, हिमाचल प्रदेश केविवि, हिंदी विवि, वर्धा, उड़ीसा केविवि व केविवि गुजरात के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित वेबिनार में कही।
“आत्म निर्भर भारत के लिए नई शिक्षा नीति-2020 के आलोक में ज्ञानयुक्त समाज का निर्माण” विषय पर आयोजित इस वेबिनार की शुरुआत राष्ट्रीय गीत और सरस्वती वंदना के साथ हुई। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. महीप ने स्वागत भाषण दिया। इसके बाद कार्यक्रम के सचिव व पूर्व छात्र संघ, जेएनयू के महासचिव डॉ. धीरज कुमार सिंह ने अपना वक्तव्य दिया। इसके पश्चात पूर्व छात्र संघ, जेएनयू के अध्यक्ष राजेश कुमार ने सभी विद्वानों एवं विषय का परिचय देते हुए अपनी बात रखी। जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रमोद कुमार ने उद्घाटन वक्तव्य दिया। प्रारुप नई शिक्षा नीति, समिति के सदस्य प्रो. एम.के. श्रीधर ने बीज वक्तव्य दिया।
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति ने प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने नई शिक्षा नीति के बारे में अपने संबोधन में कहा कि इसका प्रारुप पहले ही आ गया था और जुलाई-2020 में भी विवि में इस विषय पर कार्यक्रम हुआ था। आज जो लोग इससे जुड़े हैं उनमें से कुछ लोग पहले भी कार्यक्रम से जुड़े थे। जो नई शिक्षा नीति आई है आज यह सही मायने में भारतीय है। यह भारतीय भाषाओं के सम्मान को बढ़ाती है। भारतीय भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों का निर्माण करना, उपलब्ध सामग्री का अनुवाद कराना, विद्यार्थियों तक पहुंचाना आदि योजनाएं केवल सरकार की नहीं है बल्कि शैक्षणिक जगत के जुड़े हम सभी लोगों का भी काम है। कार्ययोजना हमें बनानी होगी। नई शिक्षा नीति के खिलाफ भ्रांतियों का सामना करने के लिए प्रो. शर्मा ने जनसम्पर्क, जनसंचार और जनसंवाद को जरुरी बताया।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने अपने संवोधन में पूर्व वक्ता कुलपति प्रो. शर्मा की बातों से सहमति जताते हुए कहा कि यह भारतीय शिक्षा नीति है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति है। सच्चाई यह है कि यह 185 वर्षों बाद आई शिक्षा नीति है। यह 34 वर्षों बाद आई शिक्षा नीति है, इस रुप में इसे समझने आवश्यकता नहीं है। 1835 में जो शिक्षा नीति आई थी, उस शिक्षा नीति का 1992 में एक्सटेंशन मात्र हुआ है। 1968 में कोठारी ने जरुर कोशिश की थी कि गाड़ी को पटरी पर लाया जाए। लेकिन उनकी बातें केवल सुभाषित होकर रह गयीं। अब पहली बार ऐसी शिक्षा नीति आई है जिसमें सभी भारतीय भाषाओं के लिए समान अवसर प्राप्त होता है और वास्तविक संदर्भों में भारत की बहुभाषिकता को ताकत के रुप में मानते हुए प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति बहुभाषिक हो, यह इसकी दिशा में प्रस्ताव प्रस्तुत करता है। पहली बार भारत केंद्रित शिक्षा प्रणाली है।
केंद्रीय विश्वविद्यालय, उड़ीसा के कुलपति प्रो. आई. ब्रम्ह्मम ने नई शिक्षा नीति की प्रशंसा करते हुए इसे भारत की आवश्यकता के अनुरुप बताया। वहीं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व जाने-माने शिक्षाविद श्रीनिवासजी ने अपने संबोधन में कहा कि स्वतंत्रता दिवस के दिन जेएनयू के पूर्व छात्रों ने इस जरुरी विषय को चुना है, इसका बहुत महत्व है। नई शिक्षा नीति के माध्यम से हम लोग 185 वर्षों बाद अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं। भारत में शिक्षा, मनुष्य को मनुष्य बनाने पर बल देता है, जिसे विवेकानंद जी ने मनुष्य के आंतरिक शक्तियों को जागृत करने की बात कही है। यह
आवश्यक है कि भारत के युवा भारत को तो समझें, तभी हम विश्व में अपना स्थान बनाएंगे।
अध्यक्षीय संबोधन में केंद्रीय विश्वविद्यालय गुजरात के कुलपति प्रो. रमा शंकर दूबे ने पूर्व छात्र संघ, जेएनयू को इस महत्वपूर्ण विषय पर जाने-माने विद्वानों को आमंत्रित कर विमर्श कराने के लिए धन्यवाद दिया। अपने पूर्व वक्ताओं की बातों को क्रम से रखते हुए उन्होंने सहमति जताते हुए नई शिक्षा में निहित प्रमुख बिंदुओं की चर्चा की। भारत को चाणक्य, आर्यभट्ट, सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन और महामना मदन मोहन मालवीय का देश बताते हुए अपनी भारतीयता, ज्ञान-विज्ञान पर गर्व करने की बात कही।
महात्मा गांधी केन्द्रीय विवि के प्रबंधन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. पवनेश कुमार ने कार्यक्रम के निष्कर्ष को बताते हुए कहा आज बौद्धिक जनों ने जो मंथन किया वह भारत के कल का निर्माण होगा और इससे जो अमृत निकलेगा, उससे हम सभी लाभान्वित होंगे। कार्यक्रम का संचालन केन्द्रीय विवि, गुजरात के डॉ. अतानु महापात्रा ने किया। इस अवसर पर केविवि की डॉ. सपना सुगंधा, डॉ. दिनेश व्यास, डॉ. स्वाति कुमारी, कमलेश कुमार समेत देश के कई विश्वविद्यालयों के शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी व शिक्षाविद उपस्थित रहे।