Sunday, August 16, 2020

पूर्व छात्र संघ, जेएनयू और केविवि-मोतिहारी, हिमाचल प्रदेश केविवि, हिंदी विवि, वर्धा, उड़ीसा केविवि व केविवि गुजरात के संयुक्त तत्वावधान में वेबिनार का आयोजन

भारतीय ज्ञान के आगे खड़ी ब्रिटिश शिक्षा नीति की दीवारों को गिराएगी नई शिक्षा नीति-प्रो. केसी अग्निहोत्री

प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल, प्रो. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री, प्रो. संजीव कुमार शर्मा समेत अन्य कुलपति, रजिस्ट्रार व जाने-माने शिक्षाविदों ने रखे विचार


(15 अगस्त, 2020)


भारत में 185 साल से जो शिक्षा नीति चली आ रही थी, उसमें उद्देश्य था कि भारतीयों को मानसिक रुप से गुलाम बनाना है। पुराने नीति निर्माताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वे अपने उद्देश्य में एकदम सफल रहे। मैं हैरान हूं कि उन्होंने एक भी कॉमा या फुल स्टॉप की गड़बड़ी नहीं की। अब तक जो व्यवस्था चलाते रहे वे मानते हैं कि हिंदुस्तान का ज्ञान-विज्ञान किसी काम का ही नहीं है, सब यूरोप का है। नई शिक्षा नीति के बारे में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति यह मानकर चलती है कि हिंदुस्तान में इतनी ऊर्जा, मेधा और अवसर हैं कि इनका ठीक प्रकार से सदुपयोग कर लिया जाए तो भारत बहुत आगे जा सकता है। हमारा जितना सदियों का ज्ञान है उसके आगे ब्रिटिश शिक्षा नीति ने दीवारें खड़ी की हैं, उन दीवारों को नई शिक्षा नीति हटाएगी। ये बातें हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री ने पूर्व छात्र संघ, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली और केविवि-मोतिहारी, हिमाचल प्रदेश केविवि, हिंदी विवि, वर्धा, उड़ीसा केविवि व केविवि गुजरात के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित वेबिनार में कही।


“आत्म निर्भर भारत के लिए नई शिक्षा नीति-2020 के आलोक में ज्ञानयुक्त समाज का निर्माण” विषय पर आयोजित इस वेबिनार की शुरुआत राष्ट्रीय गीत और सरस्वती वंदना के साथ हुई। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. महीप ने स्वागत भाषण दिया। इसके बाद कार्यक्रम के सचिव व पूर्व छात्र संघ, जेएनयू के महासचिव डॉ. धीरज कुमार सिंह ने अपना वक्तव्य दिया। इसके पश्चात पूर्व छात्र संघ, जेएनयू के अध्यक्ष राजेश कुमार ने सभी विद्वानों एवं विषय का परिचय देते हुए अपनी बात रखी। जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रमोद कुमार ने उद्घाटन वक्तव्य दिया। प्रारुप नई शिक्षा नीति, समिति के सदस्य प्रो. एम.के. श्रीधर ने बीज वक्तव्य दिया।


महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति ने प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने नई शिक्षा नीति के बारे में अपने संबोधन में कहा कि इसका प्रारुप पहले ही आ गया था और जुलाई-2020 में भी विवि में इस विषय पर कार्यक्रम हुआ था। आज जो लोग इससे जुड़े हैं उनमें से कुछ लोग पहले भी कार्यक्रम से जुड़े थे। जो नई शिक्षा नीति आई है आज यह सही मायने में भारतीय है। यह भारतीय भाषाओं के सम्मान को बढ़ाती है। भारतीय भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों का निर्माण करना, उपलब्ध सामग्री का अनुवाद कराना, विद्यार्थियों तक पहुंचाना आदि योजनाएं केवल सरकार की नहीं है बल्कि शैक्षणिक जगत के जुड़े हम सभी लोगों का भी काम है। कार्ययोजना हमें बनानी होगी। नई शिक्षा नीति के खिलाफ भ्रांतियों का सामना करने के लिए प्रो. शर्मा ने जनसम्पर्क, जनसंचार और जनसंवाद को जरुरी बताया।


महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने अपने संवोधन में पूर्व वक्ता कुलपति प्रो. शर्मा की बातों से सहमति जताते हुए कहा कि यह भारतीय शिक्षा नीति है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति है। सच्चाई यह है कि यह 185 वर्षों बाद आई शिक्षा नीति है। यह 34 वर्षों बाद आई शिक्षा नीति है, इस रुप में इसे समझने आवश्यकता नहीं है। 1835 में जो शिक्षा नीति आई थी, उस शिक्षा नीति का 1992 में एक्सटेंशन मात्र हुआ है। 1968 में कोठारी ने जरुर कोशिश की थी कि गाड़ी को पटरी पर लाया जाए। लेकिन उनकी बातें केवल सुभाषित होकर रह गयीं। अब पहली बार ऐसी शिक्षा नीति आई है जिसमें सभी भारतीय भाषाओं के लिए समान अवसर प्राप्त होता है और वास्तविक संदर्भों में भारत की बहुभाषिकता को ताकत के रुप में मानते हुए प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति बहुभाषिक हो, यह इसकी दिशा में प्रस्ताव प्रस्तुत करता है। पहली बार भारत केंद्रित शिक्षा प्रणाली है।


केंद्रीय विश्वविद्यालय, उड़ीसा के कुलपति प्रो. आई. ब्रम्ह्मम ने नई शिक्षा नीति की प्रशंसा करते हुए इसे भारत की आवश्यकता के अनुरुप बताया। वहीं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व जाने-माने शिक्षाविद श्रीनिवासजी ने अपने संबोधन में कहा कि स्वतंत्रता दिवस के दिन जेएनयू के पूर्व छात्रों ने इस जरुरी विषय को चुना है, इसका बहुत महत्व है। नई शिक्षा नीति के माध्यम से हम लोग 185 वर्षों बाद अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं। भारत में शिक्षा, मनुष्य को मनुष्य बनाने पर बल देता है, जिसे विवेकानंद जी ने मनुष्य के आंतरिक शक्तियों को जागृत करने की बात कही है। यह 

आवश्यक है कि भारत के युवा भारत को तो समझें, तभी हम विश्व में अपना स्थान बनाएंगे।

 

अध्यक्षीय संबोधन में केंद्रीय विश्वविद्यालय गुजरात के कुलपति प्रो. रमा शंकर दूबे ने पूर्व छात्र संघ, जेएनयू को इस महत्वपूर्ण विषय पर जाने-माने विद्वानों को आमंत्रित कर विमर्श कराने के लिए धन्यवाद दिया। अपने पूर्व वक्ताओं की बातों को क्रम से रखते हुए उन्होंने सहमति जताते हुए नई शिक्षा में निहित प्रमुख बिंदुओं की चर्चा की। भारत को चाणक्य, आर्यभट्ट, सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन और महामना मदन मोहन मालवीय का देश बताते हुए अपनी भारतीयता, ज्ञान-विज्ञान पर गर्व करने की बात कही।

महात्मा गांधी केन्द्रीय विवि के प्रबंधन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. पवनेश कुमार ने कार्यक्रम के निष्कर्ष को बताते हुए कहा आज बौद्धिक जनों ने जो मंथन किया वह भारत के कल का निर्माण होगा और इससे जो अमृत निकलेगा, उससे हम सभी लाभान्वित होंगे। कार्यक्रम का संचालन केन्द्रीय विवि, गुजरात के डॉ. अतानु महापात्रा ने किया। इस अवसर पर केविवि की डॉ. सपना सुगंधा, डॉ. दिनेश व्यास, डॉ. स्वाति कुमारी, कमलेश कुमार समेत देश के कई विश्वविद्यालयों के शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी व शिक्षाविद उपस्थित रहे।

केविवि में उच्च शिक्षा का संचालन, पुनर्गठन तथा क्रियान्वयन की रुपरेखा पर हुई चर्चा

 *राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की कार्ययोजना विषय पर ई-कार्यशाला*

*कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने की अध्यक्षता, प्रो. मनोज दीक्षित, प्रो. स्मृति कुमार सरकार, प्रो.एडीएन वाजपेयी आदि वक्ताओं ने रखे विचार*

(6 अगस्त, 2020)

महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की कार्ययोजना के क्रियान्वयन की रुपरेखा, संचालन तथा उच्च शिक्षा के पुनर्गठन से संबंधित विचार-विमर्श हेतु एक दिवसीय आभासी ई-कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने की। कार्यक्रम के शुरुआत में कुलपति प्रो. शर्मा ने उन सभी वक्ताओं का अभिनंदन किया जिन्होंने अल्पावधि सूचना के बावजूद इस महत्वपूर्ण ई-कार्यशाला हेतु अपने व्यस्ततम समय में से कुछ अवकाश निकाला। इसके पश्चात शिक्षा अध्ययन संकाय के अध्यक्ष एवं कार्यक्रम के सभापति, प्रो. आशीष श्रीवास्तव ने सभी वक्ताओं का परिचय दिया। विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. जी.गोपाल रेड्डी ने औपचारिक रुप से सभी वक्ताओं का स्वागत किया गया। सभापति प्रो. श्रीवास्तव ने ई-कार्यशाला के विषय का परिचय देते हुए सत्रारंभ किया।

डॉ.आरएमएल विवि,अयोध्या के पूर्व कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने अपने संबोधन में कहा कि ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरासत से प्राप्त पुरातन एवं कठोर शिक्षा व्यवस्था से दूर हटते हुए अधिक लचीला तथा सभी को एक साथ लाने वाली पश्चिमी व्यवस्था को अपनाने की आवश्यकता है। वर्धमान विवि, पश्चिम बंगाल के पूर्व कुलपति प्रो. स्मृति कुमार सरकार ने अपने संबोधन में कहा कि कार्यान्वयन में जल्दबाजी किए बिना धैर्य का परिचय दें। नई शिक्षा नीति के पूर्ण कार्यान्वयन से पहले इसको समझने हेतु पर्याप्त समय एवं दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी एवं इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना आवश्यक होगा। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला के पूर्व कुलपति प्रो. एडीएन वाजपेयी ने अपने संबोधन में कहा कि प्रतिष्ठित तथा नव स्थापित विश्वविद्यालय में विलय के लिए नीतिगत रुपरेखा का निर्माण होना चाहिए। यह स्थापित विश्वविद्यालय के समय परिक्षणित मूल्य प्रणाली के माध्यम से नव स्थापित संस्थानों के अपेक्षित परामर्श को सुनिश्चित करेगा। यूपी स्टेट काउंसिल ऑफ हायर एडूकेशन के अध्यक्ष एवं बीएचयू, वाराणसी के पूर्व कुलपति, प्रो. गिरीष चंद्र त्रिपाठी ने अपने संबोधन में कहा कि नई शिक्षा नीति लागू करने से पहले इसका गहन अध्ययन एवं समझ को विकसित करना होगा। एनईपी को लागू करने की बात तभी की जानी चाहिए जब इसके सभी प्रावधानों को समझा गया हो एवं सभी हितधारकों को इसके बारे में समझाया गया हो।

गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय, बंसवार राजस्थान के पूर्व कुलपति प्रो, कैलाश सोडाणी ने अपने संबोधन में कहा कि संघ लोक सेवा आयोग की तरह अध्यापकों का चयन करना होगा जिससे कि प्रक्रियाओं में अंतर्निहित कमियों से बचा जा सके। इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.नागेश्वर राव ने अपने संबोधन में कहा कि एनईपी के नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु विश्वविद्यालयों को समयबद्ध तरीके से अपने संविधि, अध्यादेशों में परिवर्तन करना होगा। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई के पूर्व कुलपति प्रो. राम मोहन पाठक ने अपने संबोधन में कहा कि नई शिक्षा नीति के सभी नीतियों को समझाने हेतु सभी राज्य सरकारों से संपर्क स्थापित किया जाना चाहिए। इससे सर्वश्रेष्ठ परिणामों को प्राप्त किया जा सकेगा। अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय, बिलासपुर के कुलपति प्रो. जी.डी.शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि दोहराव से बचने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर संविधि, अध्यादेशों की निर्माण किया जाना चाहिए।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने समापन सत्र की अध्यक्षता की। विश्वविद्यालय के आईक्यूएसी प्रकोष्ठ के समन्वयक, प्रो. आनन्द प्रकाश ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया।

शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में उम्मीद जगाती नई शिक्षा नीति-2020


                

(प्रो.पवनेश कुमार, म.गां.के.विवि, मोतिहारी)

नई शिक्षा नीति की चर्चा इन दिनों जोरों पर है। चीन से सीमा विवाद, विश्व-व्यापी कोरोना संकट और सरकार द्वारा घोषित आत्म निर्भर भारत योजना पर तमाम कॉलेजों- विश्वविद्यालयों और बौद्धिक संस्थाओं द्वारा पिछले कुछ समय से लगातार वेबिनार आयोजित हुए और ये सिलसिला अभी भी चल ही रहा है। इस बीच नई शिक्षा नीति के आ जाने से बौद्धिक वर्ग को विमर्श का एक नया विषय भी मिल गया है। इस विषय पर विचार-विमर्श इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि इससे देश के बच्चों और युवाओं का भविष्य तय होने वाला है।


नई शिक्षा नीति के सार्वजनिक होते ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल दिया गया है। अब इसे शिक्षा मंत्रालय के नाम से जाना जाएगा। 1986 के बाद 34 साल के अंतराल पर देश की शिक्षा नीति में यह बदलाव किया जा रहा है जिसे नई शिक्षा नीति-2020 के नाम से जाना जा रहा है। देश में पढ़े-लिखे युवाओं की संख्या बहुत बड़ी है किंतु इनमें से डिग्रीधारी युवा ही अधिक हैं और रोजगार का तकनीकि कौशल बहुत कम युवाओं के पास है। ऐसी शिकायतें भारत में कार्यरत कम्पनियों की तरफ से भी समय-समय पर आती रहती है। आगे से ऐसी शिकायतें कम हो जाने की उम्मीद है क्योंकि अब छठी कक्षा से ही बच्चों को प्रोफेशनल और स्किल शिक्षा दिये जाने की बात नयी शिक्षा नीति में शामिल है। भारत की जीडीपी का 6% भाग शिक्षा के लिए खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है।

अभी हिंदुस्तान में स्कूली शिक्षा 10+2 के ढांचे में चल रही है जिसे बदलकर 5+3+3+4 के फॉर्मेट में किया गया है। बच्चों के स्कूली शिक्षा के 15 वर्षों को 4 भागों में विभाजित किया गया है। पहले 5 साल में प्री-स्कूलिंग या आंगनवाड़ी के 3 साल और  कक्षा 2 तक की पढ़ाई होगी। अगले 3 वर्षों में तीसरी कक्षा से 5वीं कक्षा तक की पढ़ाई। उसके बाद 3 साल छठी से लेकर 8वीं तक की पढ़ाई  और अगले 4 साल 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई। शिक्षा तंत्र द्वारा 3 से 6 साल की उम्र के बच्चों के लिए अलग पाठ्यक्रम बनाएगी जिसमें खेलकूद एवं अन्य गतिविधियों को ज्यादा स्थान मिलेगा। कज्ञा 1 से कक्षा 3 तक के बच्चों की बुनियादी शिक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। 9 साल तक के बच्चों की साक्षरता और संख्या ज्ञान पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। बच्चों को कक्षा 6 से विषयों से परिचय करवाया जाएगा। 9वीं के बाद साईंस, आर्ट और कॉमर्स स्ट्रीम की पढ़ाई अब नहीं होगी, विद्यार्थी अपनी मर्जी से विषय चुन सकेंगे। नई शिक्षा नीति में एक नई चीज देखने को मिलेगी ये है व्यावसायिक शिक्षा। नई शिक्षा नीति के तहत कक्षा 6 से ही बच्चों की व्यावसायिक शिक्षा प्रारंभ कर दी जाएगी। जिसमें स्थानीय शिल्प और व्यापार के बारे में बताया जाएगा और उसे लोकल क्राफ्ट और ट्रेड में इंटर्नशिप का भी अवसर दिया जाएगा।


बच्चों में बोर्ड की परीक्षाओं का दबाव कम करने का उपाय नई शिक्षा नीति में शामिल है। साल में दो बार परीक्षाएं होंगी। अब रटकर समझने की बजाय समझने पर ज्यादा ज़ोर दिया जाएगा। बोर्ड परीक्षाओं को दो भागों में बांटा गया है जिसमें ऑब्जेक्टिव और डिस्क्रिप्टिव दो तरह की परीक्षाओं का प्रावधान किया गया है। अंग्रेजी का हौव्वा कम करने के उद्देश्य से नई शिक्षा नीति में मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में सीखने पर ज्यादा ज़ोर दिया गया है। इसके लिए कहा गया है कि जहां तक संभव हो 5वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में ही पढ़ाया जाए। अगर संभव हो तो 8वीं कक्षा तक यही प्रक्रिया अपनाई जाए। इस संबंध में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का कहना है कि लोगों की मातृभाषाएं या क्षेत्रीय भाषाएं तभी जिंदा रहेंगी जब वहां का क्षेत्रीय व्यक्ति उसे पढ़ेगा, बोलेगा और सीखेगा। वहीं इस नई नीति की आलोचना भी हो रही है। सरकार के लगभग हर कदम में मीन-मेख निकालने वाली कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता खुशबू सुंदर ने भी नई शिक्षा नीति का स्वागत किया है। इतना ही नहीं अपनी पार्टी की कार्य संस्कृति को देखते हुए उन्होंने पार्टी से अलग राय रखने पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से माफी भी मांग ली है। जबकि दिल्ली सरकार के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया का कहना है कि यह पॉलिसी सरकारी स्कूलों में सुधार लाने की अपनी जिम्मेदारी से भागने जैसी है। इसमें सरकारी स्कूल को सुधारने की बजाय प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा देती नज़र आ रही है।


वहीं उच्च शिक्षा में सबसे बड़ा परिवर्तन ये है कि अगर किसी वजह से पढ़ाई बीच में छूट गयी तो साल बर्बाद नहीं होंगे। किसी विद्यार्थी ने बैचलर कोर्स अगर एक साल पूरा करने के बाद किन्हीं कारणों छोड़ दिया तो उसे सर्टिफिकेट मिलेगा। 2 साल पूरा करने के बाद छूट गया तो डिप्लोमा मिल जाएगा और तीन साल सफलता पूर्वक पूरा कर लेने पर बैचलर डिग्री दी जाएगी। जिन्हें नौकरी करनी है उनके लिए 3 साल की ही डिग्री दी जाएगी जबकि शोध के क्षेत्र में जाने वाले विद्यार्थी को 4 साल की डिग्री प्रोग्राम करनी पड़ेगी। इन 4 सालों के बाद मात्र एक वर्ष का एम.ए. और फिर सीधे पीएचडी में दाखिला ले सकते हैं। तकनीकि संस्थानों में भी अब कला एवं मानविकी के विषय पढ़ाए जाएंगे। प्रवेश के लिए एक कॉमन प्रवेश परीक्षा होगी। नई शिक्षा नीति में किताबी ज्ञान की बजाय इसके व्यावहारिक पक्ष पर ज़ोर दिया जाएगा। उच्च शिक्षा में मुख्य फोकस शोध और नवाचार पर रखा गया है इसके लिए एक नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाए जाने की बात कही गयी है। दुनिया के बड़े विश्वविद्यालय भारत में अब अपना कैम्पस खोल सकेंगे।


नई शिक्षा नीति के तहत वर्ष 2022 तक सभी विद्यालयों में निर्धारित मानकों के आधार पर आवश्यक सुविधाए व सीखने का वातावरण बनाने का काम पूरा कर लिया जाएगा। जिसमें सभी स्कूलों में बिजली की सुविधा, कम्प्यूटर और इंटरनेट, अलग काबिलियत रखने वाले विद्यार्थियों की सहायता के लिए मूलभूत व्यवस्थाएं और सामग्री शामिल की जाएगी। स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं को देने के अलावा यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि शिक्षक अपना पूरा समय शिक्षण कार्य को करने और उसमें निपूणता लाने में बिता सकें। चुनाव ड्यूटी और कुछ आवश्यक सर्वे के अलावा किसी अन्य गैर शिक्षण गतिविधि जैसे मिड डे मील बनाना, टीकाकरण अभियान, स्कूल में सामग्री की खरीददारी या कोई अन्य समय लेने वाला प्रशासनिक कार्य न करना पड़े। गैर शिक्षण कार्य के लिए स्टाफ नियुक्त किया जाएगा। 

उत्कृष्ट विद्यार्थियों को शिक्षण पेशे में प्रवेश करने को प्रोत्साहित करने के लिए मेरिट आधारित छात्रवृत्ति उपलब्ध कराई जाएगी जिससे वे देश भर के महाविद्यालयों में एक बेहतरीन 4 वर्षीय एकीकृत बी.एड कार्यक्रम में पढ़ सकेंगे। इस तरह की छात्रवृत्ति के निधिकरण और स्थापना के लिए सरकार, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों और परोपकारी संगठनों में सहभागिता की जाएगी। यह छात्रवृत्तियां मुख्य रुप से सुविधा से वंचित विद्यार्थियों के लिए होंगी। शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को सख्त और पारदर्शी बनाया जाएगा। इससे समाज में शिक्षकों के पेशे के प्रति भरोसा और सम्मान पैदा होगा जिससे शिक्षकों में आत्मविश्वास आएगा।

Monday, August 3, 2020

गीता पढ़ना, सुनना और मनन करना सौभाग्य की बात- प्रभु नारायण


केविवि में वर्तमान परिदृश्य में गीता की प्रासंगिकताविषय पर वेबिनार 



 
कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा रहे संरक्षक, प्रो. पवनेश कुमार ने की अध्यक्षता

 

महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्याल के प्रबंधन विज्ञान विभाग के तत्वावधान में शनिवार को ई-विद्या व्याख्यान श्रृंखला के तहत वर्तमान परिदृश्य में गीता की प्रासंगिकताविषय पर एक विशेष वेबिनार का आयोजन किया गया। महामना मालवीय मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष, आरएसएस, अवध प्रांत के संचालक व वेबिनार के मुख्य वक्ता प्रभु नारायणजी ने अपने संबोधन की शुरुआत वेदव्यास द्वारा महाभारत में गीता का वर्णन करने के उपरांत कहे गये श्लोक गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः। या स्वयं पद्यनाभस्य मुखपद्याद्विनिः सृताः।। से किया। इसका अर्थ स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि गीता सुगीता करने योग्य है अर्थात श्री गीता जी को भली प्रकार पढ़कर अर्थ और भावसहित अन्तःकरण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है, जो कि स्वयं पद्यनाभ भगवान् श्री विष्णु के मुखारविन्द से निकली हुई है; अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या प्रयोजन है!’ उन्होंने गीता के महत्व की चर्चा करते हुए कहा कि गीता पढ़ना, सुनना और उस पर मनन करने का सौभाग्य सभी को नहीं मिलता। गीता की तुलना किसी धर्मग्रंथ से नहीं हो सकती है। दुनिया मानती है कि सबसे प्राचीन जो ग्रंथ है वह ऋग्वेद है। जिन वचनों का हमारे ऋषियों ने हजारों साल पहले प्रादुर्भाव किया, वही वसुधैव कुटुम्बकम के रुप में आज प्रचलित है। गीता पर केंद्रित वेबिनार कराने पर विवि प्रशासन की प्रशंसा करते हुए विद्यार्थियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह सौभाग्य की बात है कि प्रो. संजीव कुमार शर्मा जैसे कुलपति, प्रो. पवनेश कुमार जैसे संगठनकर्ता और डॉ. अल्का लल्हाल जैसी सहायक प्राध्यापक और संचालक विश्वविद्यालय को मिले हैं और यह महत्वपूर्ण व्याख्यान आयोजित किया जा रहा है। आगे कहा कि गीता के प्रति मैं आपके अंदर भूख पैदा कर सकता हूं, प्यास पैदा कर सकता हूं, अगर आपके अंदर गीता के प्रति जिज्ञासा जग गई तो मैं इस व्याख्यान को सफल समझूंगा।

 

विश्वविद्यालय के कुलपति व वेबिनार के संरक्षक प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने अपने संबोधन में गीता के बारे में बहुत ही विस्तार से एवं सरल शब्दों में बताते हुए कहा कि गीता को उपनिषदों के सार के रुप में देखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो महाभारत में नहीं है, वह भारत में नही है। मैं इसे प्रश्नोत्तर के रुप में देखता हूं। गीता को लेकर जनमानस में व्याप्त आस्था पर कहा कि जब कोई घटना हो जाती है तो गीता के इस श्लोक को ही याद किया जाता है- नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।। अर्थात इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकता। प्रो. शर्मा ने ज्ञान योग के अध्याय को पाठ्यक्रमों में शामिल करने की बात कही।

 

इससे पूर्व वाणिज्य एवं प्रबंधन विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता व वेबिनार के अध्यक्ष प्रो. पवनेश कुमार ने अपने संबोधन में गीता पर केंद्रित व्याख्यान आयोजित होने पर प्रसन्नता व्यक्त की और सहर्ष अनुमति के लिए विवि के कुलपति प्रो. शर्मा के प्रति आभार जताया। मुख्य वक्ता के बारे में कहा कि श्री प्रभु नारायण जी उ.प्र. सरकार से चीफ इंजीनियर पद से सेवानिवृत्त हैं और वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अवध प्रांत के संचालक के साथ-साथ महामना मालवीय मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। इनका गीता पर गहरा अध्ययन है और इन्होंने अनेक स्थानों पर गीता पर व्याख्यान दिया है। प्रो. पवनेश ने व्याख्यान में उपस्थित महामना मालवीय मिशन के राष्ट्रीय महासचिव हरिशंकर सिंह, चंडीगढ़ इकाई के महासचिव समेत सभी, शिक्षकों, अधिकारियों, विद्यार्थियों एवं अन्य सहभागियों का स्वागत किया एवं आभार भी जताया।

 

व्याख्यान का संचालन प्रबंधन विज्ञान विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. अल्का लल्हाल ने किया जबकि प्रबंधन विज्ञान विभाग के पीएचडी शोधार्थी चंदन वीर ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर केविवि के प्रो. सुधीर कुमार साहू, डॉ. सपना सुगंधा, डॉ. शिरिष मिश्रा, डॉ. स्वाति कुमारी, डॉ. दिनेश व्यास, कमलेश कुमार, डॉ.परमात्मा मिश्रा, डॉ.पाथलोथ ओंकार, डॉ.भवनाथ पाण्डेय, पीआरओ शेफालिका मिश्रा, सिस्टम एनालिस्ट दीपक दीनकर, माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के डॉ.आदित्य मिश्रा समेत बड़ी संख्या शिक्षक, विद्यार्थी, शोधार्थी व देश के विभिन्न विवि के विद्वान ऑनलाइन उपस्थित रहे।


आत्म गौरव जागृत करने का नाम है ‘आत्म निर्भर भारत’-श्रीनिवासजी

केविवि और शोध-बिहार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुआ राष्ट्रीय वेबिनार


श्रीनिवासजी रहे मुख्य अतिथि, डॉ. धीरज कुमार सिंह मुख्य वक्ता, व प्रो. सुधीर प्रताप सिंह रहे विशेष वक्ता*

 

कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने की अध्यक्षता, प्रो. पवनेश कुमार रहे संयोजक, शोध-बिहार के गौरव रंजन ने संभाला आयोजन सचिव का दायित्व

 

देश आज कई मोर्चों पर एक साथ लड़ाई लड़ रहा है। कोरोना संकट से कम से कम जन हानि हो, देशवासियों का विश्वास किसी भी प्रकार कम न हो इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर लड़ाई लड़ी जा रही है। यह वह देश है जहां शरीर पर एक धोती लपेटकर, लाठी लेकर चलने वाले महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नेतृत्व किया। उन्होंने केवल स्वतंत्रता की बात नहीं की बल्कि राम राज्य और ग्राम स्वराज की भी बात की थी। आज कोरोना संकट में वही बातें हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं। ये बातें सामाजिक चिंतक श्रीनिवासजी ने महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय और मानवता के समग्र विकास के लिए छात्रसंगठन (शोध), बिहार के संयुक्त तत्वावधान में आत्मनिर्भर भारत के उभरते परिदृश्य में ग्रामीण विकासविषय पर आयोजित वेबिनार में कही। आत्म निर्भर भारत अभियान के संबंध में चीन की तरफ इशारा करते हुए कहा कि यह आंदोलन किसी के प्रतिक्रिया में अथवा किसी देश को पीछे करने के लिए भी नहीं बल्कि आत्म निर्भर भारतप्रत्येक भारतवासी के आत्म गौरव को जागृत करने का नाम है। सबके लिए रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और दवाई का प्रबंध होने की बात करते हुए कहा कि जब तक हम दत्तोपंत ठेंगड़ी के भारत की अवधारणा नहीं समझेंगे तब तक भारत का विकास नहीं कर सकेंगे।

 

इससे पूर्व जीआरसी इंडिया के प्रबंधन निदेशक डॉ. धीरज कुमार सिंह ने बतौर मुख्य वक्ता अपने संबोधन में कहा कि जनमानस में आत्म निर्भर भारतअभियान को लेकर एक विशिष्ट वातावरण निर्मित हो रहा है। इससे देश में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जो विकास होगा उससे प्रत्येक भारतीय के जीवन में गुणवत्ता आएगी। हमारे उत्पादों की मात्रा ही नहीं बढ़ेगी बल्कि उनमें गुणवत्ता भी आएगी। लोकल के लिए वोकल होने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि इससे कई प्रकार से विकास एक साथ नज़र आएंगे। आधारभूत संरचना का निर्माण होगा, सड़कें बनेंगी, रोजगार की स्थिति अच्छी होगी। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और अशिक्षा की स्थिति सुधरेगी। प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। यह हमारे कुल जीडीपी का 10 प्रतिशत है। आज हमें मिल-जुलकर इसका लाभ उठाने की आवश्यकता है। डिमांड और सप्लाई चैन को संतुलित करने की जरुरत है। गांधी जी, एपीजे अब्दुल कलाम और नानाजी देशमुख जैसे महापुरुषों के बताए मार्ग पर चलते हुए हम अपने ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करते हुए सम्पूर्ण देश का विकास कर सकते हैं। विश्वविद्यालयों की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि स्नातक स्तर से ही विद्यार्थियों में उद्यमिता के प्रति उत्सुकता पैदा करना, बिजनेस प्लानिंग सीखाना, उद्यमिता का प्रचार करना आवश्यक है।

 

वहीं जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के अधिष्ठाता, छात्र कल्याण, डॉ सुधीर प्रताप सिंह ने बतौर विशिष्ट अतिथि अपने संबोधन में कहा कि ग्रामीण विकास सदैव ही महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है लेकिन आज इसकी जरुरत कुछ ज्यादा ही है। आत्म निर्भर भारत योजना का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार का प्रयास है कि देश में काम काज करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाए और अपनी अधिकतम चीजों के लिए हम खुद पर निर्भर हों। इसके लिए स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी तमाम योजनाएं संचालित की जा रही हैं। आगे कहा कि आत्म निर्भर भारत का मतलब आत्मकेंद्रित होना नहीं है, बल्कि यह समाज केंद्रित योजना है। इसके लिए तमाम जटिलताओं को सरल किया जा रहा है। लघु उद्योगों की परिभाषा नये सिरे से तय की गयी है। कोरोना एक विश्वव्यापी संकट है इसे अवसर में कैसा बदला जाए, इस दिशा में काम हो रहा है। सरकार ने योजना बनाई है कि जो लोग गांव की ओर माइग्रेट होकर आए हैं उनका उपयोग ग्रामीण विकास के कार्यों में हो। मनरेगा में सरकार ने बड़े पैमाने पर अतिरिक्त पैसा लगाया है।

 

अपने अध्यक्षीय संबोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने इस महत्वपूर्ण विषय पर आयोजित वेबिनार में बड़ी संख्या में देश के तमाम राज्यों से लोगों के जुड़ने पर प्रसन्नता जताई। सभी वक्ताओं एवं सहभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि विवि. में इस तरह के बौद्धिक आयोजन लगातार हो रहे हैं। ई-ज्ञान सीरिज आयोजित हुए। विभिन्न विभागों द्वारा 50 से अधिक वेबिनार कराए जा चुके हैं। विषय पर केंद्रित होते हुए कहा कि आत्म निर्भरता का मतलब दुनिया भर में जो कुछ अच्छा है, शुभ है वह हम तक आ जाए और मेरे पास जो अच्छा  है वह पूरे विश्व में फैल जाए, सब सुखी हों। भारतीय संस्कृति का जिक्र करते हुए कहा कि जो मेरे-आपके लोकाचार, शिष्टाचार के विषय थे, कोरोना काल में अब विश्व के लिए वह ग्राह्य हो गये हैं।

 

वेबिनार के संयोजक एवं केविवि के वाणिज्य एवं प्रबंधन विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रो. पवनेश कुमार ने इस सफल आयोजन के लिए सभी अतिथियों, वक्ताओं एवं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.शर्मा का आभार जताया। वेबिनार से जुड़े विश्वविद्यालय परिवार के सदस्यों के सहयोग के लिए सराहना करते हुए अन्य सहभागियों के प्रति भी आभार ज्ञापित किया और आगे भी ऐसे वेबिनार आयोजित करने की बात कही। वेबिनार के आयोजन सचिव व मानवता के समग्र विकास के लिए छात्रसंगठन (शोध), बिहार के राज्य संयोजक गौरव रंजन ने सभी वक्ताओं एवं अतिथियों का संक्षिप्त परिचय देते हुए स्वागत किया एवं बड़ी संख्या में जुड़े सहभागियों का भी स्वागत किया।

 

प्रबंधन विज्ञान विभाग के शोधार्थी चंदनवीर ने वेबिनार का संचालन किया। वेबिनार में केविवि के प्रो. राजीव कुमार, प्रो. सुधीर कुमार साहू, डॉ. सपना सुगंधा, डॉ.अल्का लल्हाल, डॉ. स्वाति कुमारी, कमलेश कुमार, डॉ. दिनेश व्यास, डॉ.पाथलोथ ओंकार, पीआरओ शेफालिका मिश्रा, सिस्टम एनालिस्ट दीपक दीनकर, माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के डॉ.आदित्य मिश्रा समेत बड़ी संख्या शिक्षक, विद्यार्थी, शोधार्थी व देश के विभिन्न विवि के विद्वान ऑनलाइन उपस्थित रहे।