(प्रो.पवनेश कुमार, म.गां.के.विवि, मोतिहारी)
नई शिक्षा नीति की चर्चा इन दिनों जोरों पर है। चीन से सीमा विवाद, विश्व-व्यापी कोरोना संकट और सरकार द्वारा घोषित आत्म निर्भर भारत योजना पर तमाम कॉलेजों- विश्वविद्यालयों और बौद्धिक संस्थाओं द्वारा पिछले कुछ समय से लगातार वेबिनार आयोजित हुए और ये सिलसिला अभी भी चल ही रहा है। इस बीच नई शिक्षा नीति के आ जाने से बौद्धिक वर्ग को विमर्श का एक नया विषय भी मिल गया है। इस विषय पर विचार-विमर्श इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि इससे देश के बच्चों और युवाओं का भविष्य तय होने वाला है।
नई शिक्षा नीति के सार्वजनिक होते ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल दिया गया है। अब इसे शिक्षा मंत्रालय के नाम से जाना जाएगा। 1986 के बाद 34 साल के अंतराल पर देश की शिक्षा नीति में यह बदलाव किया जा रहा है जिसे नई शिक्षा नीति-2020 के नाम से जाना जा रहा है। देश में पढ़े-लिखे युवाओं की संख्या बहुत बड़ी है किंतु इनमें से डिग्रीधारी युवा ही अधिक हैं और रोजगार का तकनीकि कौशल बहुत कम युवाओं के पास है। ऐसी शिकायतें भारत में कार्यरत कम्पनियों की तरफ से भी समय-समय पर आती रहती है। आगे से ऐसी शिकायतें कम हो जाने की उम्मीद है क्योंकि अब छठी कक्षा से ही बच्चों को प्रोफेशनल और स्किल शिक्षा दिये जाने की बात नयी शिक्षा नीति में शामिल है। भारत की जीडीपी का 6% भाग शिक्षा के लिए खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है।
अभी हिंदुस्तान में स्कूली शिक्षा 10+2 के ढांचे में चल रही है जिसे बदलकर 5+3+3+4 के फॉर्मेट में किया गया है। बच्चों के स्कूली शिक्षा के 15 वर्षों को 4 भागों में विभाजित किया गया है। पहले 5 साल में प्री-स्कूलिंग या आंगनवाड़ी के 3 साल और कक्षा 2 तक की पढ़ाई होगी। अगले 3 वर्षों में तीसरी कक्षा से 5वीं कक्षा तक की पढ़ाई। उसके बाद 3 साल छठी से लेकर 8वीं तक की पढ़ाई और अगले 4 साल 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई। शिक्षा तंत्र द्वारा 3 से 6 साल की उम्र के बच्चों के लिए अलग पाठ्यक्रम बनाएगी जिसमें खेलकूद एवं अन्य गतिविधियों को ज्यादा स्थान मिलेगा। कज्ञा 1 से कक्षा 3 तक के बच्चों की बुनियादी शिक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। 9 साल तक के बच्चों की साक्षरता और संख्या ज्ञान पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। बच्चों को कक्षा 6 से विषयों से परिचय करवाया जाएगा। 9वीं के बाद साईंस, आर्ट और कॉमर्स स्ट्रीम की पढ़ाई अब नहीं होगी, विद्यार्थी अपनी मर्जी से विषय चुन सकेंगे। नई शिक्षा नीति में एक नई चीज देखने को मिलेगी ये है व्यावसायिक शिक्षा। नई शिक्षा नीति के तहत कक्षा 6 से ही बच्चों की व्यावसायिक शिक्षा प्रारंभ कर दी जाएगी। जिसमें स्थानीय शिल्प और व्यापार के बारे में बताया जाएगा और उसे लोकल क्राफ्ट और ट्रेड में इंटर्नशिप का भी अवसर दिया जाएगा।
बच्चों में बोर्ड की परीक्षाओं का दबाव कम करने का उपाय नई शिक्षा नीति में शामिल है। साल में दो बार परीक्षाएं होंगी। अब रटकर समझने की बजाय समझने पर ज्यादा ज़ोर दिया जाएगा। बोर्ड परीक्षाओं को दो भागों में बांटा गया है जिसमें ऑब्जेक्टिव और डिस्क्रिप्टिव दो तरह की परीक्षाओं का प्रावधान किया गया है। अंग्रेजी का हौव्वा कम करने के उद्देश्य से नई शिक्षा नीति में मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में सीखने पर ज्यादा ज़ोर दिया गया है। इसके लिए कहा गया है कि जहां तक संभव हो 5वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में ही पढ़ाया जाए। अगर संभव हो तो 8वीं कक्षा तक यही प्रक्रिया अपनाई जाए। इस संबंध में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का कहना है कि लोगों की मातृभाषाएं या क्षेत्रीय भाषाएं तभी जिंदा रहेंगी जब वहां का क्षेत्रीय व्यक्ति उसे पढ़ेगा, बोलेगा और सीखेगा। वहीं इस नई नीति की आलोचना भी हो रही है। सरकार के लगभग हर कदम में मीन-मेख निकालने वाली कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता खुशबू सुंदर ने भी नई शिक्षा नीति का स्वागत किया है। इतना ही नहीं अपनी पार्टी की कार्य संस्कृति को देखते हुए उन्होंने पार्टी से अलग राय रखने पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से माफी भी मांग ली है। जबकि दिल्ली सरकार के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया का कहना है कि यह पॉलिसी सरकारी स्कूलों में सुधार लाने की अपनी जिम्मेदारी से भागने जैसी है। इसमें सरकारी स्कूल को सुधारने की बजाय प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा देती नज़र आ रही है।
वहीं उच्च शिक्षा में सबसे बड़ा परिवर्तन ये है कि अगर किसी वजह से पढ़ाई बीच में छूट गयी तो साल बर्बाद नहीं होंगे। किसी विद्यार्थी ने बैचलर कोर्स अगर एक साल पूरा करने के बाद किन्हीं कारणों छोड़ दिया तो उसे सर्टिफिकेट मिलेगा। 2 साल पूरा करने के बाद छूट गया तो डिप्लोमा मिल जाएगा और तीन साल सफलता पूर्वक पूरा कर लेने पर बैचलर डिग्री दी जाएगी। जिन्हें नौकरी करनी है उनके लिए 3 साल की ही डिग्री दी जाएगी जबकि शोध के क्षेत्र में जाने वाले विद्यार्थी को 4 साल की डिग्री प्रोग्राम करनी पड़ेगी। इन 4 सालों के बाद मात्र एक वर्ष का एम.ए. और फिर सीधे पीएचडी में दाखिला ले सकते हैं। तकनीकि संस्थानों में भी अब कला एवं मानविकी के विषय पढ़ाए जाएंगे। प्रवेश के लिए एक कॉमन प्रवेश परीक्षा होगी। नई शिक्षा नीति में किताबी ज्ञान की बजाय इसके व्यावहारिक पक्ष पर ज़ोर दिया जाएगा। उच्च शिक्षा में मुख्य फोकस शोध और नवाचार पर रखा गया है इसके लिए एक नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाए जाने की बात कही गयी है। दुनिया के बड़े विश्वविद्यालय भारत में अब अपना कैम्पस खोल सकेंगे।
नई शिक्षा नीति के तहत वर्ष 2022 तक सभी विद्यालयों में निर्धारित मानकों के आधार पर आवश्यक सुविधाए व सीखने का वातावरण बनाने का काम पूरा कर लिया जाएगा। जिसमें सभी स्कूलों में बिजली की सुविधा, कम्प्यूटर और इंटरनेट, अलग काबिलियत रखने वाले विद्यार्थियों की सहायता के लिए मूलभूत व्यवस्थाएं और सामग्री शामिल की जाएगी। स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं को देने के अलावा यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि शिक्षक अपना पूरा समय शिक्षण कार्य को करने और उसमें निपूणता लाने में बिता सकें। चुनाव ड्यूटी और कुछ आवश्यक सर्वे के अलावा किसी अन्य गैर शिक्षण गतिविधि जैसे मिड डे मील बनाना, टीकाकरण अभियान, स्कूल में सामग्री की खरीददारी या कोई अन्य समय लेने वाला प्रशासनिक कार्य न करना पड़े। गैर शिक्षण कार्य के लिए स्टाफ नियुक्त किया जाएगा।
उत्कृष्ट विद्यार्थियों को शिक्षण पेशे में प्रवेश करने को प्रोत्साहित करने के लिए मेरिट आधारित छात्रवृत्ति उपलब्ध कराई जाएगी जिससे वे देश भर के महाविद्यालयों में एक बेहतरीन 4 वर्षीय एकीकृत बी.एड कार्यक्रम में पढ़ सकेंगे। इस तरह की छात्रवृत्ति के निधिकरण और स्थापना के लिए सरकार, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों और परोपकारी संगठनों में सहभागिता की जाएगी। यह छात्रवृत्तियां मुख्य रुप से सुविधा से वंचित विद्यार्थियों के लिए होंगी। शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को सख्त और पारदर्शी बनाया जाएगा। इससे समाज में शिक्षकों के पेशे के प्रति भरोसा और सम्मान पैदा होगा जिससे शिक्षकों में आत्मविश्वास आएगा।
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