*केविवि के प्रबंधन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. पवनेश कुमार ने दिया विशेष व्याख्यान*
*‘कोविड-19 के पश्चात आर्थिक चुनौतियां एवं संभावनाएं’ विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान*
*बड़ी संख्या में विद्यार्थियों व अध्यापकों ऑनलाइन दर्ज कराई उपस्थिति*
(5 मई 2020)
लॉकडाउन का समय सभी के लिए संकटों भरा है, बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार छूट गये हैं, मजदूरों की समस्या विकराल रुप ले चुकी है ऐसे में निराश होने की बजाय पॉजिटिव सोच के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है। सरकार अपनी तरफ से प्रयास कर रही है, हमें भी अपनी जिम्मेदारी निभानी है। गांवों से शहरों की तरफ जो मजूदर गये थे वे वापस घरों की ओर आने लगे हैं। शहरों में कुछ दिनों तक काम-काज पर इसका असर पड़ेगा। अब वक्त आ गया है कि रोजगार के लिए युवा शहरों की तरफ देखने की बजाय गांव में ही अपना उद्यम शुरु करें। ये बातें महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय के प्रबंधन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. पवनेश कुमार ‘कोविड-19 के पश्चात आर्थिक चुनौतियां एवं संभावनाएं’ विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान में कही। ज्ञात हो कि कोरोना संकट के दौर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, केविवि इकाई ने फेसबुक लाइव के माध्यम से व्याख्यानों की श्रृंखला शुरु की है। इसी क्रम में मंगलवार को प्रो. पवनेश कुमार ने विद्यार्थियों एवं अध्यापकों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि इस समय भय और निराशा का माहौल है। वस्तुओं का विक्रय कम हो गया है। लेकिन भय और निराशा से निकलकर अपने पॉजिटिव सोच से माहौल बदलने की आवश्यकता है। उत्पादन हो और उत्पादों की डिमांड बढ़े इस ओर प्रयास करने की आवश्यकता है। रोजगार के लिए गांवों से शहरों की ओर गये और संकट में फंसकर पुनः गांवों की ओर लौट रहे मजदूरों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह स्थिति मजदूरों के लिए ही नहीं बल्कि उद्योगों के लिए भी चिंताजनक है। उद्योग-धंधे शुरु होंगे तो मजदूरों की कमी हो जाएगी। ऐसे में अब वक्त आ गया है कि 10-15 हजार की नौकरी के लिए शहरों की ओर पलायन करने वाले युवाओं को सही राह दिखाई जाए। सरकार स्किल डेवलपमेंट योजना चला रही है जिसका असर भविष्य में देखने को मिलेगा। सरकार द्वारा औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों, पॉलिटेक्निक कॉलेजों और इंजिनीयरिंग कॉलजों को अपडेट कर रोजगारपरक पाठ्यक्रमों को चलाया जा रहा है। भारत ही नहीं विदेशों में भी स्किल्ड युवाओं की मांग है।
केविवि के एक छात्र का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे एक विद्यार्थी ने टिफिन पहुंचाने का काम शुरु किया। किसी से रोजगार मांगने की बजाय शहर में अध्ययन-अध्यापन कर रहे लोगों तक टिफिन पहुंचाकर वह अपना उद्यम कर रहा है। ऐसे लोगों की प्रशंसा और प्रोत्साहन की जानी चाहिए। नौकरी को उत्तम और कृषि आदि कार्यों को हेय दृष्टि से देखने की आलोचना करते हुए उन्होंने एक पुरानी कहावत ‘उत्तम खेती’ का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर किसी व्यक्ति के दो बेटे हैं। एक बेटा शहर में 10-15 हजार रुपये की नौकरी करता है और दूसरा बेटा गांव में ही कृषि आदि कार्य करके अपनी आजिविका कमाता है तो अभिभावक शहर वाले बेटे की प्रशंसा करते हैं और गांव वाले बेटे को हतोत्साहित करते हैं। यह गलत नज़रिया है। इस नज़रिये को बदलना ही होगा। आगे कहा कि हम लोग महात्मा गांधी के नाम से स्थापित विवि से जुड़े हैं, मैं गांधी जी की धरती से गांधी जी को याद करते हुए उनके ग्राम स्वराज की बात कहता हूं।
आज विकास 3000 शहरों तक ही सिमित होकर रह गया है। ये शहर विकास के टापू बन गये हैं। सभी लोग वहां जाकर काम करते हैं। अब तक गांवों को नजरअंदाज किया गया है। वर्तमान सरकार अब गांवों की तरफ देख रही है। गांव-गांव बिजली पहुंच रही है, गांवों तक उज्वला योजना पहुंच गयी है। गांवों में अब रोजगार स्थापित करने की आवश्यकता है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के बीच कंपनियां अब चीन से अपना काम-काज खत्म कर दूसरे देशों में अपना उद्योग स्थापित करना चाहती हैं। चाइना विश्व का सबसे बड़ा मैनुफैक्चरिंग हब है लेकिन परिस्थितिवश कुछ कंपनियां वहां से दूसरे जगह आना चाहती हैं। ऐसे में भारत को उनके लिए दरवाजे खोलने चाहिए। अपनी आवश्यकता के अनुसार सुविधाएं देकर कंपनियों को ग्रामीण क्षेत्रों में लाने का प्रयास करना चाहिए। जिससे ये कंपनियां ग्रामीण क्षेत्रों में आकर स्थानीय लोगों को रोजगार दे सकें।
‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ की बात करते हुए कहा कि मुजफ्फरपुर लीची के लिए और दरभंगा मखाना के लिए जाना जाता है। इस तरह और भी तमाम जिले हैं जिनकी अपने विशेष उत्पादों के लिए विशिष्ट पहचान है। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना से इन जिलों के लोगों को ही नहीं बल्कि आस-पास के क्षेत्रों में भी लोगों को रोजगार मिलेगा। भारत की जनसंख्या को अभिशाप समझने के नज़रिये पर चोट करते हुए कहा कि जो हमारी जनसंख्या है वह संपदा है, समस्या नहीं है। इंडिया की जो ताकत है वह उसका मार्केट है साथ ही यहां मजदूर भी है। शहरों से गांवों को रोजगार का हब बनाकर संतुलन बनाने की जरुरत है। शहरों में दूध और शहद जैसे उत्पादों की जरुरत है। लोगों को ये उत्पाद नकली मिल रहे हैं। ऐसे शुद्ध उत्पादों की ओर भी रोजगार की संभावना है। आज आर्गेनिक फार्मिंग की आवश्यकता है। ये प्रोडक्ट फैशन नहीं है बल्कि अनिवार्य हो गये हैं। युवाओं को इस ओर देखने की आवश्यकता है। फाइनेंसियल सिस्टम को दुरुस्त करने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि उद्यमी को जिस तरह आसानी से लोन मिल जाता है उस तरह से किसानों को आसानी से लोन क्यों नहीं मिलता? इस ओर कार्य करने की आवश्यकता है। कृषि योग्य भूमि की समस्या पर कहा कि हमारे यहां लैंड होल्डिंग छोटी-छोटी है। यहां भी कॉपरेटिव फार्मिंग या कांट्रैक्ट फार्मिंग की आवश्यकता हो गयी है। कॉपरेटिव मॉडल का जिक्र करते हुए कहा कि अमूल गुजरात का सक्सेजफूल कॉपरेटिव मॉडल है। आगे कहा कि केएफसी जैसी कंपनी करोड़ों रुपये कमा रही है। बिहार में मछली की डिमांड बहुत है। क्यों ना हम मछली के लिए वैसी ही व्यवस्था करें जैसा वह कंपनी चिकन के लिए करती है। अंत में उन्होंने सकारात्मक सोच रखकर संकट के समय में भी आगे बढ़ने की बात कही।
इस व्याख्यान में केविवि के प्रो.आशीष श्रीवास्तव, प्रो.विकास पारीक, प्रो. बिमलेश कुमार, डॉ. पाथलोथ ओमकार, कमलेश कुमार, माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के डॉ. आदित्य कुमार मिश्रा आदि शिक्षकों व बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराई।
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