Tuesday, May 5, 2020

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया और युवा मन


डॉ.आदित्य कुमार मिश्रा-गोरखपुर, साथ में अजय कुमार, सुधाकर ओझा, राजकुमार पाण्डेय, उमेश तिवारी व शशांक द्विवेदी।
           सूचना एवं संचार क्रांति के युग में फेसबुक-ट्विटरवाट्सअप और इंस्टाग्राम जैसे डिजिटल माध्यमों के द्वारा बड़ी संख्या में लोगों की अभिव्यक्तियां सामने आ रही हैं। उपयोगकर्ताओं की मानसिकता के अनुसार ही कंटेट सामने आता है। इनमें से कुछ लोग कुछ विशिष्ट सूचनाएं देनेमनोरंजक विषय वस्तु प्रस्तुत करने और जागरुकता फैलाने का कार्य इन प्लेटफॉर्मों पर करते हैंजिसे पढ़कर या देख-सुनकर मन प्रफुल्लित हो जाता है। वहीं इन माध्यमों पर कुछ लोग नफरत से भरा संदेश डालते हैं तो कुछ लोग उस संदेश से प्रेरित होकर अपनी मुर्खतापूर्ण प्रतिक्रिया डालते हैं और कुछ लोग लाइक और शेयर करके इस नफरत की आग को फैलाते रहते हैं। कुछ लोग अपने पुत्र-पुत्रीपड़ोसीरिश्तेदार और सेलिब्रिटी या दिवंगत महापुरुषों की जन्मदिनशादी की वर्षगांठपुण्यतिथि आदि अवसरों पर चित्र-विडियो और टेक्स्ट के सहारे अपनी शुभकामना या संवेदना व्यक्त करते हैं। शुभ-अवसरों के संदेशों की आवृत्ति भी एक सीमा के बाद चिड़चिड़ाहट पैदा करती है लेकिन सार्वजनिक तौर पर इनकी आलोचना तंगदिली की निशानी हो सकती है इसलिए इस ओर ज्यादा कुछ नहीं कहना। लेकिन एक तरफ के लोगों द्वारा नफरत फैलानेबैठे-बिठाये प्रधानमंत्री कोवित्तमंत्री कोमुख्यमंत्री और पुलिस प्रशासन आदि को सलाह देनेताना मारने, ‘सच-झूठ’ जो भी मिले उसे नफरत की चाशनी में डालकर परोसने का काम किया जाता है तो दूसरी तरफ के लोगों द्वारा विपक्षी दल के नेताओंअपने से अलग विचारधारा के कलाकारों की अमर्यादित शब्दों और प्रतीकों से आलोचना करने का काम किया जाता है। दोनों ही खेमों का साथ देने वाले लोग भी बड़ी संख्या में मौजूद रहते हैं। न्यूज चैनलों और समाचार पत्रों में भी एजेंडा के तहत आलोचनात्मक या चाटुकारितापूर्ण प्रसारण-प्रकाशन को पहचानना-समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है। समाचार चैनलसमाचार पत्रसोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म हमारी दिनचर्या के हिस्सा बन चुके हैं। इन माध्यमों के बारे में कुछ न कुछ राय सभी के मन में होती है। इस संदर्भ में लालबाहदुर शास्त्री प्रबंधन संस्थान की प्रो. तृप्ति बर्थवाल का एक कथन बड़ा ही महत्वपूर्ण हैं जिसमें वह कहती हैं दिन भर न्यूज मत देखिये। देश-दुनिया से थोड़ा अवेयर ज़रुर रहिये, मगर मीडिया की अति से बचिये। ओवर इटिंग से वॉमेटिंग और डायरिया होती है। टीवी-न्यूज पेपर और सोशल मीडिया से कुछ अलग भी कीजिये। प्रो. बर्थवाल का यह कहना जायज है कि मीडिया से खबरों का ओवरडोज लेना ठीक नहीं है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि हाथों में एंड्रायड मोबाइल और सस्ता डेटा लेकर आदमी करे तो क्या करे। वामेटिंग और डायरिया होता है तो हो जाए, आम लोग विशेषकर युवा 'हर फिक्र को धुएं में उड़ाकर' चलने पर आमादा हैं। जिनकी प्राथमिकताएं तय नहीं हैं या जिनके पास करने को कुछ खास नहीं है वे पहले ओवरडोज लेंगे फिर 'वॉमेटिंग और डायरिया' के शिकार भी बनेंगे और सवाल उठाने पर अपने लिए कोई ना कोई तर्क भी ढूंढ लेंगे।

           इस संबंध में पत्रकारिता के छात्र अजय कुमार का कहना है कि विकासवाद के तमाम उपक्रमों की तरह सोशल मीडिया की वजह से भी फेक न्यूजअफवाहघृणापूर्ण टिप्पणी आदि कई समस्याएं उत्पन्न हुई है। सूचना को परमाणु बम से भी अधिक खतरनाक माना जाता है ऐसे में इन चुनौतियों से निपटने के लिए उपयोगकर्ताओं के क्रियाकलापों पर लगाम लगाना आवश्यक हो गया है। सोशल मीडिया एकाउंट को आधार कार्डपैन कार्ड जैसे दस्तावेजों से जोड़ने होंगेंसाथ ही लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी पड़ेगी।
            मीडिया स्टूडेंट राजकुमार पाण्डेय बताते हैं कि सोशल मीडिया जो लोगों की आवाज उठाने और सूचना के सुगम माध्यमों का जरिया था, अब लोगों द्वारा नफरत भरी बातों और पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर विभिन्न समुदायों में नफरत भरने का कार्य कियाजा रहा है।  अगर हम सोशल मीडिया के शुरुआती दिनों की बात करें तो यह समाज में सुलभ मीडिया के रूप में लोगों की अच्छी पहुंच बना रहा था। पर मुझे लगता है जब से राजनीतिक पार्टियों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अपने प्रचार का जरिया बनाया तब से वहां पर उनके पार्टियों का प्रचार कम समुदायों में वैमनस्य की भावना को लगातार भड़काने का कार्य किया जा रहा है। और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स समाज के कुंठित लोगों के अलावा तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग भी नफरत फैलाने से बाज नहीं आता है। हालिया घटना पर गौर करें तो दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जफरुल इस्लाम ने जिस तरह से फेसबुक पर मुस्लिमों की हिंसा को लेकर टिप्पणी की थी वह उनकी कुंठित और पूर्वाग्रह से ग्रसित सोच को प्रदर्शित करता है जो कि किसी भी जिम्मेदार पद पर अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन कर रहे व्यक्ति से अपेक्षा नहीं की जाती है।                                               मीडिया स्टूडेंट शशांक द्विवेदी का कहना है कि पत्रकारिता आज पत्रकारिता नहीं रह गई बल्कि चाटुकारिता ज्यादा बन गई है। कहने को तो हम चौथे स्तंभ है लेकिन आज के समय में पत्रकारों की मनोदशा देख कर आश्चर्य होता है। कहने  का तात्पर्य ये है कि जिस तरह बड़े पत्रकारों और ईमानदार पत्रकारों की छवि को आज कल के फर्जी पत्रकार ने धोया है वो कहीं न कहीं समाज के लिए हानिकारक है । मीडिया के प्लेटफॉर्म वक़्त के साथ बढ़ गए। सोशल मीडिया में हजारों की संख्या में पत्रकार हो गए है जो कि अपने कृत्य से कई अनुभवी पत्रकारों को बदनाम कर रहे हैं। मीडिया जगत में हम सरकार ही नहीं अपितु समाज के भी ताने सुनते हैं। पत्रकारों को न्यूज़ छापने और सच्चाई दिखाने की स्वतंत्रता होती है लेकिन आज के युग में न्यूज भी सरकार या बड़े आदमियों से पूछ कर छापा जाता है अपितु ये कहना गलत नहीं होगा कि मीडिया बिक चुकी है।
                 पत्रकारिता के छात्र उमेश तिवारी का कहना है कि आज फेसबुकट्विटरलिंक्डइन इत्यादि प्लेटफार्मों का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। शिक्षकोंप्रोफेसरों और छात्रों के बीच ये काफी लोकप्रिय हो गया है। एक छात्र के लिए सोशल मीडिया बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि यह उनके लिए जानकारी को साझा करनेजवाब प्राप्त करने और शिक्षकों से जुड़ने में सहायता करता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से छात्र और शिक्षक एक-दूसरे से जुड़ सकते हैं और इस प्लेटफॉर्म का अच्छा उपयोग करके जानकारी साझा कर सकते हैं। सोशल मीडिया के बिना हमारे जीवन की कल्पना करना मुश्किल हैपरन्तु इसके अत्यधिक उपयोग के वजह से हमे इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती हैं। सोशल मीडिया समाज के विकास में अपना योगदान देता है और कई व्यवसायों को बढ़ाने में भी मदद करता है। सोशल मीडिया मार्केटिंग जैसे साधन प्रदान करता है जो लाखों सशक्त ग्राहकों तक पहुंचाता है। हम आसानी से सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी और समाचार प्राप्त कर सकते हैं। किसी भी सामाजिक मुद्दे पर जागरूकता पैदा करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग एक अच्छा साधन है। इच्छुक नौकरी तलाशने वालों को भी इससे सहायता मिलती है। यह व्यक्तियों को बिना किसी हिचकिचाहट के दुनिया के साथ सामाजिक विकास और बातचीत करने में मदद कर सकता है। बहुत से लोग उच्च अधिकारियों के प्रोत्साहित भाषण को सुनने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। यह आपको लोगों से मेल-जोल बढ़ाने में भी मदद कर सकता है। सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग निद्रा को प्रभावित करता हैं। साइबर बुलिंगछवि खराब होना आदि जैसे कई अन्य नकारात्मक प्रभाव भी हैं। सोशल मीडिया की वजह से युवाओं में 'गुम हो जाने का भय' (एफओएमओ) अत्यधिक बढ़ गया है। सोशल मीडिया लोगों में निराशा और चिंता पैदा करने वाला एक कारक है। ये बच्चों में खराब मानसिक विकास का भी कारण बनते जा रहा है। सोशल मीडिया के कई नुकसान और भी हैं जैसे: साइबर बुलिंग ,हैकिंगव्यक्तिगत डेटा का नुकसान, (जो सुरक्षा समस्याओं का कारण बन सकता है) तथा आइडेंटिटी और बैंक विवरण चोरी जैसे अपराध और बुरी आदतें (सोशल मीडिया का लंबे समय तक उपयोगयुवाओं में इसके लत का कारण बन सकता है। बुरी आदतो के कारण महत्वपूर्ण चीजों जैसे अध्ययन आदि में ध्यान खोना हो सकता है)  सामाजिक और पारिवारिक जीवन का नुकसानरिश्ते में धोखाधड़ीहनीट्रैप्स और अश्लील एमएमएस सबसे ज्यादा ऑनलाइन धोखाधड़ी का कारण हैं। लोगो को इस तरह के झूठे प्रेम-प्रंसगो में फंसाकर धोखा दिया जाता है। सोशल मीडिया पर हमे उसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं की जॉच कर लेनी चाहिए क्योंकि सोशल मीडिया का आजकल हमारे जीवन में होने वाले सबसे हानिकारक प्रभावो में से एक माना जाने लगा हैऔर इसका गलत उपयोग करने से बुरा परिणाम सामने आ सकता है।
         पत्रकारिता के छात्र सुधाकर ओझा का कहना है कि सोशल मीडिया के उपयोग के फायदे तो बहुत है पर दुरुपयोग भी बहुत हो रहा है। एक घटना याद आ रही है जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तबीयत बहुत खराब थी और वह हॉस्पिटल में एडमिट थे तो किसी के द्वारा एक अफवाह फैलाई गई की योगी आदित्यनाथ जी के पिता का देहांत हो चुका है अब वह खबर कई ग्रुपों में चली लेकिन जब मैंने उसकी पुष्टि की तो गलत थी, तब वह जीवित थे। इसके अलावा एक चीज और देखने को मिलती है कि लोगों द्वारा खासतौर एक दूसरे के धर्म और महिलाओं को लेकर जो बहुत ही गलत तरीके से टिप्पणियां की जाती हैं। कुछ लोग एक दूसरे के धर्म की मान्यताओं को गलत साबित करने में लगे रहते हैं। जिसको देखकर मन बहुत दुखी होता है और इस कारण समाज में कितना मतभेद फैला हुआ है आजकल एक नया ट्रेंड चला है सोशल मीडिया में किसी का प्रचार, किसी का दुष्प्रचार नेताओं या समर्थकों द्वारा किसी भी दूसरे नेता के फोटो-वीडियो को एडिट कर छवि धूमिल करने की कोशिश की जाती है लेकिन जब सच्चाई पता चलती है तो सोशल मीडिया से डर भी लगने लगता है। अभी कुछ दिनों पहले मैंने फेसबुक में किसी व्यक्ति द्वारा एक पोस्ट देखा जिसमें लिखा था मैं भारत को बर्बाद कर दूंगा और उसके नीचे प्रधानमंत्री की फोटो लगी थी यह देखकर बहुत ही बुरा लगा और मैंने उन महानुभव से अनुरोध किया कि इस प्रकार की पोस्ट तुरंत डिलीट कर दें।

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